सेज सजी है बाणों की……
सेज सजी है बाणों की जिसमे भीष्म पितामह सोये है!
रण की भेरी के किस्से सुनकर वो नित दिन ही रोये है!!
क्यों तुम इतने बेबस लाचार बने बाणों की सैया में लेटे हो!
तुम तो इच्छा मृत्यु के वरदान तले कितने ही युद्ध जीते हो!!
सेज सजी है बाणों की……
पिता की काम वासना को तुमने देश के ऊपर रख डाला!
भारतवर्ष की अस्मिता पर खेलकर भीष्म प्रतिज्ञा कर डाला!!
अम्बे अंबालिके को हरकर नारी जाति का अपमान किया!
सिंहासन की रक्षा खातिर द्रौपदी चीरहरण स्वीकार किया!!
सेज सजी है बाणों की……
हस्तिनापुर में सजी चौसरे कपट के पासे पड़ते थे!
दुर्योधन की हर गलत चाल को लाचारी से सहते थे!!
दर्द हुआ मेरा तब दुगना जब दुर्योधन ने जंघा पीटा था!
उसी सभा में कर्ण ने द्रौपदी को वेश्या नाम बख़्शीशा था!!
सेज सजी है बाणों की….
धर्मयुध्द में भी पितामह तुमने अधर्म का ध्वजा थामा था !
तभी तो तुम्हारे खातिर कृष्ण ने सुदर्शन चक्र निकाला था!!
अभिमन्यु की मृत्यु को सुनकर तुम भीष्म प्रतिज्ञा पर रोये थे!
तभी तो हस्तिनापुर के भीष्म पितामह बाणों की सैया मे सोये थे!!