- प्रोजेक्ट बचपन के तहत सहयोग से उन्नति की थीम पर होगा काम
- आदिवासी बाहुल्य ग्रामों में पोषण प्रबंधन की रणनीतिक बैठक में निर्णय
सतना, भास्कर हिंदी न्यूज़/ सतना जिले के मझगवां विकासखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में आदिवासी बाहुल्य ग्रामों में बच्चों के कुपोषण को दूर करने सरकारी प्रयासों के अलावा स्वयंसेवी संगठन, सामाजिक कार्यकर्ता एवं अन्य संस्थाएं अलग-अलग प्रयास कर रही हैं। इन प्रयासों को कारगर और निश्चित प्रभावी बनाने कलेक्टर अनुराग वर्मा की अध्यक्षता में विकासखंड के 28 ग्राम पंचायतों के 70 ग्रामों को कुपोषण मुक्त करने मंगलवार को तहसील कार्यालय में पोषण प्रबंधन की बड़ी रणनीतिक बैठक संपन्न हुई। इस मौके पर तय किया गया कि क्षेत्र में कुपोषण के विरुद्ध कार्यरत सभी संस्थाएं एवं सरकारी तंत्र मिलजुलकर सम्मिलित प्रयासों से सभी कुपोषित बच्चों को 6 माह की अवधि में सामान्य श्रेणी में लाने के प्रयास करेंगे। इस बैठक में सीईओ जिला पंचायत डॉ परीक्षित राव, एसडीएम पीएस त्रिपाठी, तहसीलदार नितिन झोंड़, सीईओ जनपद सुलभ सिंह पुशाम, बीएमओ डॉ तरुणेन्द्र मिश्रा, जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला एवं बाल विकास सौरभ सिंह, दीनदयाल शोध संस्थान, कृषि विज्ञान केंद्र, सद्गुरु सेवा संघ ट्रस्ट, अधिकार मंच के प्रतिनिधि सहित इन ग्रामों के सरपंच, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता एवं स्वास्थ्य कार्यकर्ता तथा समाजसेवी भी उपस्थित रहे।
मझगवां के आदिवासी बाहुल्य 28 ग्राम पंचायतों के 70 ग्रामों को कुपोषण से मुक्ति दिलाने प्रोजेक्ट बचपन के तहत पोषण प्रबंधन की रणनीति बनाई गई है। सबसे पहले क्षेत्र में कुपोषण के विरुद्ध कार्य कर रहे संगठन संस्थाओं से कुपोषण के क्षेत्रीय कारण, चुनौतियां एवं कठिनाइयां जानी गईं तथा उनके समाधान के लिए सुझाव भी लिए गए।
कलेक्टर अनुराग वर्मा ने कहा कि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में जब तक लोग जंगलों पर निर्भर थे, तब उन्हें पर्याप्त न्यूट्रीशिन जंगलों की उपज से मिलता था। कुपोषण आज भी कोई बीमारी नहीं है। जागरूकता की कमी, समुदाय की निरुत्साहिता, आजीविका जैसे कई कारण हैं, जो कुपोषण को जन्म देते हैं। उन्होंने कहा कि पहले कुपोषण की समस्या विकराल हुआ करती थी। किंतु इस दिशा में किए गए प्रयासों से कुपोषण की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। उन्होंने कहा कि कुपोषण दूर करने में संसाधनों की समस्या नहीं है, जागरूकता की समस्या है। अभी कुपोषण मुक्त करने के प्रयासों में कई संस्थाएं बेहतर कार्य कर रही हैं। आवश्यकता है कि हम सब मिलजुलकर सम्मिलित प्रयासों से कुपोषण के कलंक को दूर करें। उन्होंने कहा कि सरपंच और सचिव चाहे तो मिलकर गांव की तस्वीर बदल सकते हैं। कलेक्टर ने कहा कि हम सब मिलकर मझगवां के क्षेत्र को कुपोषण मुक्त करने में निश्चित सफल होंगे।
सीईओ जिला पंचायत डॉ परीक्षित राव ने कहा कि कुपोषण की सबसे बड़ी वजह गरीबी, अशिक्षा और स्वास्थ्य जागरूकता की कमी होती है। यदि मां कुपोषित है तो बच्चा भी शत-प्रतिशत कुपोषित होगा। यदि कहीं फीमेल चाइल्ड कुपोषित हुआ तो यह साइकल आगे भी चल सकती है। उन्होंने कहा कि प्रोजेक्ट बचपन के तहत सभी 28 ग्राम पंचायत के प्रधानों की जिम्मेदारी होगी कि वह अपनी पंचायत में अभियान को लीडरशिप देवें। एसडीएम पीएस त्रिपाठी ने कहा कि अभी तक सतना जिले का मझगवां क्षेत्र कुपोषण के कलंक से जाना जाता था। क्षेत्र में सम्मिलित प्रयासों से सभी फील्ड लेवल के अधिकारी-कर्मचारी पूरे मनोयोग से 6 माह के कार्यक्रम में सहयोग कर मझगवां के आदिवासी बाहुल्य ग्रामों को कुपोषण मुक्त कर सामान्य श्रेणी में लाने का प्रयास करेंगे।
सीईओ जनपद ने कहा कि क्षेत्र की पेयजल समस्या का समाधान जल जीवन मिशन के माध्यम से और आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र के हितग्राहियों को पात्रतानुसार सभी शासकीय योजनाओं के लाभ से परिपूर्ण करने का प्रयास किया जाएगा। बीएमओ तरुणेन्द्र मिश्रा ने बताया कि कुपोषण कोई बीमारी नहीं है। बहुधा बच्चों में कुपोषण की शुरुआत ब्रेस्ट फीडिंग से होती है। कोलेस्ट्रम कुपोषण दूर करने में सहायक है। यदि सभी प्रसव संस्थागत हो तो कुपोषण को रोकने में बड़ी मदद मिलेगी। कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ राजेश सिंह नेगी ने कहा कि कोलेस्ट्रम से कुपोषण दूर होता है। इसके अलावा हमारे आसपास प्रकृति में कई न्यूट्रीशन हैं, जानकारी के अभाव में जिनका उपयोग नहीं कर पाते। संस्थागत प्रसव नहीं होने पर कुपोषण का खतरा 300 प्रतिशत बढ़ जाता है। इसलिए सुनिश्चित करें कि क्षेत्र में एक भी बच्चा घर में पैदा नहीं हो। उन्हें संस्थागत प्रसव के लिए प्रोत्साहित करें। सद्गुरु संघ ट्रस्ट, डीआरआई, अधिकार मंच, समाजसेवी एवं अन्य संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने भी अपने अनुभव, क्षेत्र की चुनौतियों की जानकारी देते हुए क्षेत्र को कुपोषण मुक्त करने अपने सुझाव दिए।
मझगवां के आदिवासी बाहुल्य ग्रामों में पोषण प्रबंधन की रणनीति और प्रोजेक्ट बचपन की जानकारी में जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला बाल विकास सौरभ सिंह ने बताया कि 28 ग्राम पंचायतों के 70 ग्रामों में आदिवासी बाहुल्यता है, जहां कुपोषण का प्रभाव है। रणनीति के तहत 6 माह की समय-सीमा में सभी के सम्मिलित प्रयासों से चिन्हित बच्चों को सामान्य श्रेणी में लाया जाएगा। जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों में कमी लाना, शत-प्रतिशत टीकाकरण, बच्चों की देखभाल के लिए परिजनों में समझ पैदा करना, आईवाईसीएफ गतिविधियों को निचले स्तर पर पहुंचा कर समुदाय का उन्मुखीकरण करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है प्रोजेक्ट बचपन में विकासखंड की आदिवासी बाहुल्य ग्राम पंचायतों के 70 ग्रामों को चिन्हित किया गया है।
प्रोजेक्ट बचपन में मझगवां विकासखंड की 28 ग्राम पंचायतों में 70 ग्रामों को चिन्हांकित किया गया है। जिनकी कुल जनसंख्या 57 हजार 983 है। इनमें 5535 सामान्य श्रेणी, 1811 बच्चे मध्यम पोषण स्तर और 415 बच्चे गंभीर कुपोषण की श्रेणी में है। परियोजना क्रमांक-1 चित्रकूट में 7 सेक्टरों में शून्य से 5 वर्ष के 16 हजार 319 बच्चे हैं। जिनमें 16 हजार 22 बच्चों का वजन कर न्यूट्रीशन स्टेटस नापा गया है।