छतरपुर/हरपालपुर, भास्कर हिंदी न्यूज़/ जिला मुख्यालय छतरपुर से 55 किमी दूर हरपालपुर कस्बे में सैकड़ों फुट ऊंचे पहाड़ पर जहां सैकड़ों साल पहले उभरी माता की सूक्ष्म पिंडी उभर आई वहीं देवी मां की सिद्ध प्रतिमा प्रतिष्ठापित कराके भव्य मंदिर का निर्माण करा दिया गया है। जो लोगों की श्रद्धा और आस्था का केन्द्र है। चैत्र व शारदेय नवरात्र में यहां हजारों देवी भक्त मां के दर्शनार्थ पहुंचते हैं।
किंंवदंती है कि सैकड़ों वर्ष पहले देवी मां की कठोर साधक एक कन्या शरीर पर हल्दी चढ़ाए पहाड़ पर पहुंची और देवी मां ने उसे अपनी गोद में स्थान देकर पहाड़ में विलीन कर दिया। उसी सिद्ध स्थान से देवी मां की एक पिंडी उभरी जिसे वर्षों से माता अर्द्धकुंवारी के रूप में पूजते हैं। देवी मां के दरबार तक जाने के लिए भक्त करीब पहाड़ को काटकर बनाई गई 300 से अधिक सीढ़ियों को चढ़कर पहुंचते हैं। देवी भक्तों को विश्वास है कि शारदेय व चैत्र नवरात्र अष्टमी की आधी रात में इस सिद्ध साधना स्थल पर देवी मां की विशेष आराधना में शामिल होकर देवी भक्त जो मनौती मांगते हैं, मां उसे पूरा कर देती हैं। इसी आस्था और विश्वास से अष्टमी की रात में यहां बड़ी संख्या में देवी भक्त मां के चरणों में अपनी अर्जी लगाने पहुंचते हैं। यह परंपरा कई सालों से सतत रूप से चली आ रही है।
देवी की शक्ति से पर्वत में समा गई मां की साधक
देवीभक्त 98 साल के वयोवृद्ध राजाराम पाल व अन्य देवी भक्तों ने बताया कि ऐसी किवदंती है कि सैकड़ों वर्षों पूर्व एक छोटे से गांव के निर्धन परिवार की कन्या दुर्गा मां की उपासक थी। संयोगवश दो जगह उसकी शादी की बात चली और दोनों जगहों से एक साथ, एक ही दिन दो बारातें उसे ब्याहने आ गईं। कन्या से विवाह किसका होगा इस बात पर लाठियां तन गईं। खूनी संघर्ष न हो इससे घबराकर शरीर में हल्दी लगाए कन्या किसी बहाने से पहाड़ पर पहुंची, वहां सच्चे मन से देवी मां को याद किया तो पहाड़ में दरार हो गई और कन्या उसमें समा गई। जब तक लोग उसे खोजते हुए पहाड़ पर बने हल्दी के पगचिन्हों के सहारे उस स्थान पर पहुंचे तो उन्हें वहां हल्दी चिन्हों के बीच एक सूक्ष्म पिंडी उभरी दिखाई दी। इसे देवी मां का आशीर्वाद मानकर सभी के मस्तक श्रद्धा से झुक गए। तभी से यहां मां अर्द्धकुंवारी मां को पूजा जाने लगा। पहाड़ पर आज भी हल्दी वाले पगचिन्ह उभरे हैं जो पूजे जाते हैं।