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Kumbh Sankranti: त्रिपुष्कर योग में कुंभ संक्रांति, जानिए पूजा विधि व महत्व

Kumbh Sankranti 2022 : digi desk/BHN /ग्वालियर/ कुंभ संक्रांति रविवार काे मनाई जा रही है। ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि इस दिन प्रीति एवं त्रिपुष्कर योग में सूर्य देव मकर राशि से निकलकर कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे। कुंभ राशि में सूर्य देव एक माह तक रहेंगे, फिर मीन राशि में गोचर करेंगे। सूर्य देव वर्ष के हर माह में अपना राशि परिवर्तन करते हैं। वे जिस राशि में जाते हैं, उस राशि से जुड़ी संक्रांति प्रारंभ होती है।

संक्रांति के दिन सूर्योदय पूर्व स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है। धन संपदा में बढ़ोत्तरी के साथ ब्रह्म लोक में स्थान प्राप्त होता है। कुंभ संक्रांति के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सूर्य देवता को सूर्य मंत्र का जाप करते हुए अर्घ्य देना चाहिए। इस दिन भगवान सूर्य की विधि-विधान से पूजा करने से जीवन में सफलता प्राप्त होती है। रोगों का नाश होता है। सूर्य देव के आशीर्वाद से सभी कष्ट दूर होकर मान सम्मान और प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। इस दिन गरीबों को दान करने से मृत्यु के पश्चात उत्तम धाम की प्राप्ति होती है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कुंभ संक्रांति मुहूर्त 

 कुंभ सं​क्रांति 13 फरवरी को सुबह 03:41 बजे से शुरू होगी। संक्रांति का पुण्यकाल सुबह 07:01 से शुरू होगा, जो दोपहर 12:35 पर समाप्त होगा। महाकाल सुबह 07:01 से  08:53 तक रहेगा।

कुंभ संक्रांति की पौराण‍िक कथा 

पौराणिक कथा अनुसार एक ब्राह्मण था, जिसकी पत्नी बड़ी ही धार्मिक थी। वह सभी देवी देवताओं का व्रत विधिवत करती थी, लेकिन उसने धर्मराज की ना तो कभी पूजा की ना ही व्रत किया। मृत्यु के पश्चात जब चित्रगुप्त ब्राह्मण की पत्नी के पापों का लेखा-जोखा देख रहे थे, तब उन्होंने ब्राह्मण की पत्नी से कहा कि तुमने कभी भी धर्मराज का व्रत नहीं रखा ना ही दान पुण्य किया और ना ही पूजा-पाठ किया। इसी वजह से तुम्हें यह भुगतना पड़ रहा है। चित्रगुप्त की बात सुनकर ब्राह्मण की पत्नी ने कहा कि यह भूल मुझसे अनजाने में हुई है। मुझे भूल सुधारने का आप उपाय बताएं, तब चित्रगुप्त ने उपाय बताते हुए कहा कि जब भगवान सूर्य उत्तरायण में रहेंगे तब तुम धर्मराज की पूजा प्रारंभ करके पूरे वर्ष कथा सुनना और दान कर व्रत का उद्यापन करना। ब्राह्मण की पत्नी ने ऐसा ही किया, जिसके बाद उसे ब्रह्म लोक में स्थान मिला।

 

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