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न्यू ईयर: मनाइये…सोचिए और समझाइये..!

अंग्रेजी का या फिर यूं कहें कि ‘अंग्रेजों का न्यू ईयर’ 2022 आप सबकी की देहरी पर है। बात थोड़ी तीखी है परंतु कड़वी सच्चाई है कि अंग्रेज भारत छोड़

               ऋषि पंडित
          ( प्रधान संपादक )

कर चले गये पर अपनी अंग्रेजी सभ्यता भारतवासियों की अस्मिता पर चेंप गये। हद तो यह है कि देश को आजाद हुए सात दशक से भी ऊपर का समय बीत गया और अंग्रेजों व मुगलों की चेंपू सभ्यता आज भी कथित आधुनिकतावाद की टोपी पहन कर हमारी हिंदू संस्कृति के सिर पर बैठ कर मुंह चिढ़ा रही है।

आप कह सोच रहे होंगे की नये साल के आगमन पर ये क्या बेतुकी बातें कहीं जा रही हैं..! जश्न और जोश के बीच इन निराशा फैलाने वाले मुद्दों का भला क्या काम? पर आप यदि गंभीरता से सोचेंगे तो गुलाम भारत की आजादी के छटपटाते दृश्य और इसके लिए कुर्बानियां देनें वाले रणबांकुरों की तस्वीरें सहज ही आपके मानस पटल पर उभर आयेंगी।

सवाल यही है कि क्या यही न्यू ईयर है कि कंपकंपाती ठंड में शराब की बाटलों के साथ असभ्य शब्दों व असभ्यता का वमन करती युवा पीढ़ी एक-दूसरे को ‘हैप्पी न्यू ईयर’ बोल कर कथित ‘नव वर्ष’ में प्रवेश कर      जाती है..!  न तो उसे देश की सनातनी संस्कृति से कोई लेना-देना है और न ही परिवार व समाज के प्रति अपने दायित्वों की चिंता..! सवाल आप सभी से है कि शराब की बोतलों में उतरती युवा पीढ़ी देश को क्या दिशा और किस दशा में ले जायेगी आपको पता है..?

जवाब भी जानिये कि बोतलों में कैद युवा पीढ़ी की दशा और दिशा का अंदाजा सभी को है पर कोई कुछ कर नहीं पा रहा। सरकारें सियासत के चूल्हे पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रही हैं और आज के दौर का कथित ‘परिवारवाद’ बुजुर्गों के कांधे पर लदा हुआ ‘समाजवाद’ को मुंह चिढ़ा रहा होता है। वह भी इसलिए कि “हम तो अपनी मर्जी के मालिक हैं न तो किसी भी मुद्दे पर हमे रोक पसंद है और न टोक..!” युवा अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने का आदी होता जा रहा है। उसे न तो माता-पिता की बंदिशें अच्छी लगती है और न समाज की टोका-टाकी।

ज्यादा सोचने व दूर जाने जरूरत नहीं है, न्यू ईयर पर आप इस युवा पीढ़ी के ‘फेस्टिवल,पार्टी’ मनाने के अंदाज और रिवाज को देख लीजिये सब समझ में आ जायेगा। किंतु एक मशविरा भी है इनके आनंद में खलल डालने की कोशिश भी मत कीजिएगा वर्ना माता-पिता को ‘माम’ और ‘डैड’ कहने वाली ये पीढ़ी आप पर ही ‘पुरातनपंथी’ होने का सर्टीफिकेट चस्पा कर देगी और फिर आगे बढ़ जायेगी अंग्रेजियत का फ्राइडे, सेटरडे और संडे जैसे दिनों के लिए हैप्पी होने की पार्टी में शामिल होने।

इन युवा कदमों को जकड़ती नशे की बेड़ियों के लिए आप बकते रहिए गालियां..! पर ये कड़वी सच्चाई है कि इनके लिए ऐसी पार्टियां स्टेटस सिंबल बनती जा रही हैं। अरबपति किंग खान के बेटेआर्यन का किस्सा अभी बहुत पुराना नहीं हुआ है। छोड़िये बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी..! बड़े लोगों की बड़ी बातें…समस्या यह है कि बड़े लोगों की बड़ी बातें अब छोटे और मध्यवर्गीय परिवारों के लिए नजीर बनती जा रही है।
छोटी से तनख्वाह व दिन भर मजदूरी कर पैसे कमाने वाले लोगों के बच्चे आधुनिक बनने की होड़ में बड़ी तेजी से शामिल हो रहे हैं और उनका परिवार चक्की के दो पाटों के बीच में पिसने को मजबूर होता जा रहा है। अगर ‘न्यू ईयर’ या ऐसे किसी भी अंग्रेजियत भरे फेस्टिवल सनातनधर्मियों को इस तरह के खतरनाक परिणाम देने वाले हैं तो हमें नहीं चाहिए..! अंग्रेजों का न्यू ईयर उन्हें ही मुबारक…! यह बात उन्हें बड़ी गंभीरता से समझनी चाहिए जिनके कंधे पर हम देश का भविष्य देखते हैं।

भारत व्रत पर्व व त्योहारों का देश है। यूं तो हम हर दिन को पावन मानते हैं। महापुरुषों की मृत्यु के दिनों पर भी हम छाती पीटते या शोक व्यक्त करने के स्थान पर उसे पुण्य तिथि के रूप में मनाते हुए कुछ नव.संकल्पों के साथ उनके बताए मार्ग पर चलने की प्रेरणा लेते हैं। हम सदैव उत्कर्ष, प्रकाश, प्रगति,धर्म तथा विश्व कल्याण मार्ग के अनुगामी हैं।

नव वर्ष के स्वागत के लिए कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे हर मन में सात्विक नव ऊर्जा का संचार हो। हमारे संस्कार व संस्कृति कहती है कि हम नवागंतुक का स्वागत दीप जलाकर,थाली सजा आरती उतार कर करें। कुमकुम, तिलक या टीका लगाकर, स्वच्छ वस्त्र पहनकर, पुष्प, धूप, दीप नैवेद्य आदि से घर को सुगंधित कर शंख व मंगल ध्वनि के साथ हवन.यज्ञ, सत्संग आराधना द्वारा प्रभु का गुणगान करें। निराश्रितों तथा गौ माताओं को भोजन कराकर पुण्य लाभ कमाएं। भगवान के मंदिर जाएं, गरीबों और रोगियों की सहायता, वृक्षारोपण, समाज में प्यार और विश्वास बढ़ाने के प्रयासए तथा शिक्षा का प्रसार जैसे कार्यों का संकल्प लें। इनके अलावा भी जीवन में उत्साह व आनंद भरने तथा आत्म गौरव बढ़ाने संबंधी अनेक अन्य प्रकार भी स्वागत व अभिवादन हेतु प्रयुक्त किए जा सकते हैं। इसके स्वागतार्थ जाम से जाम टकराने की जगह गौ-घृत से दीप जलाकर हृदय से हृदय मिलाएं। बड़ों का तिरस्कार कर नहीं अपितु उनका अनुशासन व आशीर्वाद पा कर वर्ष का स्वागत करें। कोई भी पर्व या त्योहार तब तक भारतीय नहीं कहलाया जा सकता जब तक कि उसके मनाने से जीवन में नव उत्साह या आनंद का संचार ना हो।

काल गणना का प्रत्येक पल अपना विशिष्ट महत्व रखता है। किंतु भारतीय नव वर्ष विक्रमी संवत का पहला दिन यानी वर्ष प्रतिपदा अपने आप में अनूठा है। इसे नव संवत्सर भी कहते हैं। पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए इसी दिन सूर्यदेव का एक चक्कर पूरा करती है। दिन-रात बराबर होते हैं। चंद्रमा की चांदनी अपनी छटा बिखेरना प्रारंभ कर देती है। ऋतुओं के राजा वसंत के आगमन के कारण प्राकृतिक सौंदर्य अपने चरम पर होता है। फागुन के रंग और फूलों की सुगंध तन-मन को प्रमुदित कर देती है। वार, तिथि, ग्रह, नक्षत्र और संपूर्ण प्रकृति पर यौवन का रंग जो सबके जीवन में उल्लास और उमंग भर देता है सही मायनों में वह ही भारतीय संस्कृति और सनातनधर्मियों के लिए नव वर्ष है। इसलिए अंग्रेजों के ‘न्यू ईयर’ के ‘हैप्पी’ होने की शुभकामनाएं जरूर दीजिए परंतु सनातन संस्कृति के नववर्ष का स्वागत भी इसी उल्लास और उमंग के साथ करने की सीख युवा पीढ़ी को दीजिए तभी भारतीय परंपरा और नव वर्ष सार्थक होंगे।

“भास्कर हिंदी न्यूज” परिवार की ओर से अंगेजों का न्यू ईयर आप सबके लिए ‘हैप्पी’ हो, इसके लिए ढेर सारी शुभकामनाएं…! इसे मजबूरी समझिये या आत्ममंथन मर्जी आपकी…!

 

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