RTPCR detected omicron the weakness of recognize the gene became strength of technique: digi desk/BHN/नई दिल्ली/कोरोना से संक्रमित व्यक्ति में ओमिक्रोन वैरिएंट की मौजूदगी का पता लगाने के लिए अभी उसके नमूने की जीनोम सीक्वेंसिंग कराई जा रही है। परंतु, किसी व्यक्ति के omicron से संक्रमित होने का पता आरटी-पीसीआर जांच से ही चल जाता है। दरअसल, ओमिक्रोन वैरिंएट में मौजूद एस जीन को आरटी-पीसीआर जांच नहीं पकड़ पाती है और यही कमजोरी उसकी ताकत बन गई है। वैसे स्वास्थ्य मंत्रालय ओमिक्रोन की पुष्टि के लिए जीनोम सीक्वेंसिंग पर जोर दे रहा है।
ऐसे पहचाना जाता है ओमिक्रोन
स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल के अनुसार आरटी-पीसीआर जांच में कोरोना वायरस के तीन विशिष्ट जीन की मौजूदगी के आधार पर संक्रमण की पुष्टि होती है। ये तीनों स्पाइक (एस), इनवेलोप्ड (ई) और न्यूक्लियोकैपसिड (एन) जीन है। इन तीनों विशिष्ट जीन की पहचान करने के कारण ही आरटी-पीसीआर जांच को मानक माना जाता है और एंटीजन टेस्ट के बाद भी संक्रमण की पुष्टि के लिए आरटी-पीसीआर जांच को जरूरी बनाया गया है।
कमजोरी ही बनी मजबूती
ओमिक्रोन वैरिएंट के मामले में आरटी-पीसीआर जांच में इनवेलोप्ड (ई) और न्यूक्लियोकैपसिड (एन) जीन की पहचान तो हो जा रही है, लेकिन स्पाइक (एस) प्रोटीन की पहचान नहीं हो पा रही है। आरटी-पीसीआर जांच की रिपोर्ट बताती है कि संबंधित व्यक्ति के सैंपल में स्पाइक (एस) प्रोटीन ही नहीं। इसके आधार पर आसानी से बताया जा सकता है कि संबंधित व्यक्ति कोरोना के ओमिक्रोन वैरिएंट से संक्रमित है।
स्पाइक जीन में 25 से 32 बदलाव
आरटी-पीसीआर टेस्ट में स्पाइक (एस) जीन के नहीं पकड़ पाने की मूल वजह यह है कि ओमिक्रोन वैरिएंट में सबसे ज्यादा बदलाव इसी में आया है। अकेले स्पाइक जीन में 25 से 32 बदलाव देखे गए हैं। आरटी-पीसीआर टेस्ट के लिए कोरोना वायरस के मूल स्वरूप में मौजूद तीनों जीन की पहचान को आधार बनाया गया था।
फिलहाल जीनोम सीक्वेंसिंग पर ही भरोसा
हालांकि, स्वास्थ्य मंत्रालय आरटी-पीसीआर जांच में स्पाइक (एस) जीन की गैरमौजूदगी को ओमिक्रोन वैरिएंट की पहचान का मानक नहीं बना रहा है। लव अग्रवाल ने कहा कि ओमिक्रोन वैरिएंट की पहचान फिलहाल जीनोम सीक्वेंसिंग के माध्यम से ही करने का निर्देश दिया गया है। आने वाले दिनों में केस बढ़ने की स्थिति में मौजूदा आरटी-पीसीआर टेस्ट के सहारे ही ओमिक्रोन की पहचान करने का नियम बनाया जा सकता है।