Baikunth Chaturdashi 2021: digi desk/BHN/ ग्वालियर/ बैकुंठ चतुर्दशी हिंदू धर्म में कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। इसके चलते सुबह से ही हरिहर मंदिर पर भक्ताें की भीड़ लगना शुरू हाे गई है। ज्योतिषाचार्य राजेश कुमार पुरी ने बताया कि बैकुंठ चतुर्दशी को ही हरिहर का मिलन हुआ था। हरिहर का मिलन अर्थात भगवान शिव और विष्णु का मिलन। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों का पूजन करना बेहद ही फलदाई होता है। इस दिन विष्णु एवं शिव के भक्त विधि विधान के साथ व्रत कर भगवान हरिहर की पूजा अर्चना करते हैं।
पूजा विधि
बैकुंठ चतुर्दशी के दिन प्रातः स्नानादि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लें। रात्रि में भगवान विष्णु की 108 कमल के फूलों से पूजा करें। साथ ही भगवान शिव की भी पूजा करें। पूजा के दौरान ‘विना हो हरिपूजां तु कुर्याद् रुद्रस्य चार्चनम्। वृथा तस्य भवेत्पूजा सत्यमेतद्वचो मम मंत्र का जाप करें। पूजा उपरांत भगवान शंकर को मखाने से बनी खीर का भोग लगाकर आरती करें।
बैकुंठ चतुर्दशी तिथि
- बैकुंठ चतुर्दशी तिथि का प्रारंभ, बुधवार 17 नवंबर को सुबह 09:50 से हुआ
- बैकुंठ चतुर्दशी तिथि का समापन 18 नवंबर बृहस्पतिवार को दोपहर 12:00 बजे होगा
बैकुंठ चतुर्दशी कथा
बैकुंठ चतुर्दशी पर कई कथाएं प्रचलित हैं। इन पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने एक बार भगवान शिव को एक हजार स्वर्ण कमल के पुष्प चढ़ाने का संकल्प किया। भगवान शिव ने विष्णु जी की परीक्षा लेने के लिए एक हजार कमल में से एक कमल पुष्प कम कर दिया। पुष्प कम होने पर विष्णु जी अपने ‘कमल नयन’ आंख को कमल पुष्प के साथ शिव जी को समर्पित करने लगे, तभी भगवान शिव उनकी यह भक्ति देखकर बहुत प्रसन्न हुए और विष्णु के समक्ष प्रकट हुए। इस दाैरान भगवान शिव ने कहा कि कार्तिक मास की इस शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी जो बैकुंठ चौदस के नाम से जानी जाएगी काे जो भी मनुष्य आपका पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी।