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यहां रावण दहन नहीं होता, बल्कि ग्रामीण गाजे-बाजे के साथ पहुंच कर करते हैं पूजन

 राजगढ़। एक ओर जहां आज विजयदशमी के मौके पर पूरे देश में रावण के पुतलों का दहन किया जाता है, वहीं दूसरी ओर यहां पर एक स्थान ऐसा भी है जहां रावण के पुतले की पूजन की जाती है। गाजे-बाजे के साथ पहुंचकर ग्रामीण उनकी पूजन-अर्चना करते हैं। अंत में भाले से नाभी को टच करने के बाद कार्यक्रम समाप्त होता है। क्षेत्र की खुशहाली के लिए कामना करते हैं। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है।

उल्लेखनीय है कि नेशनल हाइवे क्रमांक 3 आगरा-मुंबई हाईवे पर स़डक किनारे वर्षों से एक खेत में रावण व कुंभकरण के पुतले बने हुए हैं। यहां पर विजयदशमी के दिन समीपस्थ ग्राम भाटखे़डी के ग्रामीण रामलीला के पात्रों के साथ रथ पर भगवान श्रीराम, लक्ष्मण व हनुमान सहित वानर सेना के पात्र यहां गाजे-बाजे के साथ दोपहर में जुलूस के रूप में पहुंचते हैं।

यहां पहुंचने के बाद करीब 2-3 घंटे रामलीला का मंचन होता है। इस मौके पर गांव के पटेल शिवनारायण यादव द्वारा रावण व कुंभकरण के पुतलों की विधि-विधान के साथ पूजन-अर्चना की जाती है। इसके बाद प्रतीक स्वरूप उनकी नाभी को भाले से रामजी के पात्र द्वारा टच की जाती है व कार्यक्रम का समापन कर दिया जाता है।

मन्नतें होती है पूरी

गांव के रमेशचंद्र यादव बताते हैं कि पूजन-अर्चना की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। उन्होंने बताया कि कई लोग यहां मन्नत करके जाते हैं, जो पूरी भी होती है। हाइवे से निकलने वाले कई ट्रक चालक यहां रूककर प्रसाद च़ढाते हैं। कई लोग बताते हैं कि उनके संतान व रूके हुए कार्य भी पूरे होने जैसी मन्नते पूरी हुई है। क्षेत्र में भी कई लोग यहां अपनी मन्नतें करते हैं, पूरी होने पर प्रसाद चढाकर जाते हैं।

पहले थे मिटटी के पुतले, फिर करवाए पक्के

यहां पर रावण व कुंभकर्ण के पहले मिटटी के पुतले हुआ करते थे। बारिश के समय वह बेकार हो जाते थे। ऐसे में दशहरा आने के पहले उन्हें ठीक करवाए जाते थे। लेकिन वर्षों पूर्व उन्हें फिर सीमेंट से पक्के बनवा दिए गए हैं, तब ही से वह उसी रूप में खेत में स्थापित है। हालांकि रंग-रोगन फीका प़डने पर उनका रंग-रोगन जरूर करवा दिया जाता है।

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