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खरगोन में 400 साल पुरानी परंपरा, हाथों पर जलता खप्पर लेकर निकली मां अंबे

 Navratri:खरगोन/ भावसार क्षत्रिय समाज द्वारा पिछले 400 वर्ष से अधिक समय से चली आ रही खप्पर की परंपरा के अंतर्गत शारदीय नवरात्र की महाअष्टमी को मां अंबे की सवारी निकाली गई। शारदीय नवरात्र पर निकलने वाले खप्पर की परंपरा 400 वर्ष से अधिक समय से चली आ रही है। शुक्रवार-शनिवार की मध्यरात्रि में कार्यक्रम की शुरुआत विशेष पूजन-अर्चना के साथ हुई। पहली रात्रि में माता अंबे का खप्पर निकाला गया। माता अंबे एक हाथ में जलता हुआ खप्पर और दूसरे हाथ में तलवार लेकर आई और भक्तों को दर्शन दिए। डॉ. मोहन भावसार ने बताया कि माता अंबे का स्वांग मनोज मधु भावसार और आयुष सुनील भावसार ने रचा। इसके पूर्व झाड़ की पूजन-अर्चन के बाद भगवान श्री गणेश निकले। समाजजनों द्वारा गाई गई गरबियो पर मां अंबे करीब 1 घंटे तक रमती रही। कार्यक्रम भावसार मोहल्ला स्थित श्री सिद्धनाथ महादेव मंदिर प्रांगण में मध्यरात्रि 3 बजे से प्रारंभ हुआ।

क्षेत्र को किया गया सैनिटाइज

कार्यक्रम के पूर्व क्षेत्र को सैनिटाइज किया गया। भगवान गणेश एवं मां अंबे का स्वांग रचने वाले सर्वप्रथम अधिष्ठता भगवान सिद्धनाथ महादेव के दर्शन करने के बाद ही निकलते हैं। डॉ. भावसार ने बताया कि खप्पर की परंपरा के अनुसार मां अंबे का स्वांग रचने वाले कलाकार एक परिवार के होते हैं, जो परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है।

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