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भगवान राम के ननिहाल में गांव-गांव में वध के लिए तैयार खड़े हैं रावण

Dussehra Festival 2020: रायपुर/ वैसे तो पूरे देश में दशहरे पर रावण का दहन होता है। लेकिन भगवान राम के ननिहाल माने जाने वाले छत्तीसगढ़ की बात ही अलग है। यहां गांव-गांव में रावण के वध के लिए विशालकाय प्रतिमाएं स्थायी रूप से खड़ी रहती हैं। दशहरे पर इसके वध के लिए पहले इसे रंग-रोगन कर सजाया जाता है। फिर यहीं रामलीला के बाद रावण का वध होता है। राम के प्रति प्रेम और सम्मान का भाव यहां एेसा है कि यह राज्य की संस्कृति में शामिल हो गया है। पूरे देश में कहीं ऐसी मिसाल नहीं मिलेगी। रावण की प्रतिमा भी कोई छोटी-मोटी नहीं, कम से कम 15 फीट ऊंची तो होती ही है। छत्तीसगढ़ी संस्कृति के जानकार लोगों का कहना है कि विजयादशमी का पर्व हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है यह गांव-गांव में खड़ी रावण की प्रतिमा से पता चलता है।

जानकार बताते हैं कि पहले गांव-गांव में रामलीला का मंचन होता था। समय के साथ हुए बदलाव और मनोरंजन के अन्य साधन-सुविधाओं के चलते अब 20-25 गांवों के बीच कहीं-कहीं इसका आयोजन होता है। दशहरा के दिन जरूर हर गांव में रावण दहन से पहले रामलीला के दौरान रावण वध होता है। इसके बाद गांव भर में भगवान की पूजा होती है। घर के सदस्य भी पूजे जाते हैं। छत्तीसगढ़ के प्रख्यात इतिहासकार डॉ. रमेंद्रनाथ मिश्र का कहना है कि छत्तीसगढ़ का राम के प्रति जुड़ाव अद्वितीय है। गांव-गांव में रावण की प्रतिमा के पीछे धार्मिक सोच यह है कि आपको रावण वध तो करना ही है। इस पर्व को हमने मानों अपने में बसा लिया है। तभी तो रावण की प्रतिमा खड़ी की है। साथ ही इसके पीछे ग्रामीणों की अपनी सोच भी है। जैसे एक बार प्रतिमा तैयार कर स्थापित कर दी तो हर साल प्रतिमा बनाने से मुक्त हो गए। मैदान भी सुरक्षित हो गया। जहां रामलीला के अलावा दूसरे आयोजन भी होते हैं। अवैध कब्जे से मैदान मुक्त रहता है। गावों में रावण वध स्थल को रावणभाठा और चबूतरे को रावण चौरा के नाम से जाना जाता है।

बहरहाल गांवों में रावण की मूर्तियों का रंग-रोगन हो रहा है। नवरात्र में माता की भक्ति में रमे लोग समय निकालकर विजयादशमी पर्व की तैयारियों का भी जायजा ले रहे हैं। छोटे-बड़े रावण जलाने के लिए तैयार किए जा रहे हैं। रामलीला में भूमिका निभाने वाले कलाकार रिहर्सल में जुटे हैं। वस्त्रादि तैयार कराए जा रहे हैं। कोरोना काल की बाधाओं के बीच गांव में अनुशासन का पालन करते हुए दशहरा मनाने की तैयारी है।

भांजे के प्रति प्रेम और सम्मान बन गई छत्तीसगढ़ की संस्कृति

माता कौशिल्या की जन्मभूमि छत्तीसगढ़ को कभी दक्षिण कोसल के नाम से जाना जाता था। राजधानी रायपुर से कोई 25 किलोमीटर दूर चंदखुरी गांव में माता कौशिल्या का मंदिर है। इस स्थान को ही उनका जन्म स्थान कहते है। इस नाते भगवान राम छत्तीसगढ़ के भांजे हुए। इस भाव को छत्तीसगढ़ जैसा जीता है वह अतुल्य है। भगवान राम के बहाने यहां के लोग हर भांजे का ऐसा सम्मान करते हैं जैसा कहीं और नहीं होता। जैसे- भांजे का चरण छूकर प्रणाम करना। भांजे को दान देना। भांजे के प्रति कभी असम्मानजनक व्यवहार नहीं करना। भांजे को कभी अपना जूठा नहीं खाने देना। मृत कर्म में भांजे को दान देना।

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