Cancer Treatment Experiment:digi desk/BHN/रायपुर। औषधीय गुणों से भरपूर लायचा धान की किस्म कैंसर की कोशिकाओं को मारने में कारगर साबित हुई हैं। इस धान की बाहरी परत कैंसर की कोशिकाओं के प्रगुणन को रोकने में 65 फीसद तक प्रभावी है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय (इं.कृ.वि.) और भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर मुंबई (बार्क) के सहयोग से स्तन और फेफड़े के कैंसर के इलाज के लिए धान की तीन किस्मों पर चल रहे अनुसंधान में यह बात सामने आई है। दो साल तक चूहों पर किया गया प्रयोग भी सफल रहा है।
चूहों पर कैंसर की कोशिकाओं को विकसित करके इन पर लायचा, महराजी और गठवन धान की किस्मों से उपचार का परीक्षण किया गया। इसमें पाया गया कि चूहों पर कैंसर के ट्यूमर को मारने में लायजा में सर्वाधिक क्षमता है। लायचा में एंटी इंफ्लमेट्री (प्रज्वलन विरोधी) तत्व के गुण हैं जो कि कैंसर से लड़ने के लिए प्रभावी है। अगले महीने से इसका मानव माडल पर परीक्षण किया जा सकता। विज्ञानी लायचा का पाउडर बनाने पर भी काम कर रहे हैं।
लायचा के किस्म में भी सुधार, कर दी बौनी
कैंसर रोकने में उपयोगिता को देखते हुए कृषि विज्ञानियों ने लायचा की 100 सेंटीमीटर वाली बौनी प्रजाति भी विकसित की है। पहले इस धान का पौधा 140 सेंटीमीटर का होता था । उपज भी 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो गई है। इनमे उपस्थित औषधीय गुण अपने पैतृक किस्म के समान है या नहीं ये पता लगाने के लिए जल्द ही इन क़िस्मों का परीक्षण बार्क, मुंबई के प्रयोगशाला मे किया जाएगा। इससे किसान अब इस विलुप्त हो रही धान के किस्म की फसल लगाने के लिए भी प्रोत्साहित होंगे।
ये हैं प्रमुख अनुसंधानकर्ता
इंदिरा गांधी कृषि विवि से कुलपति डा. एसके पाटिल और अनुवांशिकी और पादप प्रजनन विभाग के प्रमुख कृषि विज्ञानी डा. दीपक शर्मा, वहीं भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर मुंबई (बार्क) अनुसंधान नेतृत्वकर्ता डा. बीके दास और डा. दीपक कुमार शामिल हैं।