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Afghanistan Crisis: तालिबान के खिलाफ युद्ध को तैयार अहमद मसूद, अमेरिका से मांगे हथियार

Afghanistan Crisis : digi desk/BHN/एक तरफ तालिबान नई सरकार के गठन की कोशिश में जुटा है, तो दूसरी तरफ उसके खिलाफ एक संगठन युद्ध की तैयारी कर रहा है। मिली जानकारी के मुताबिक काबुल के उत्तर में स्थित पंजशीर घाटी में तालिबान के खिलाफ खड़ी होनेवाली ताकतें और नेता इकट्ठा हो रहे हैं। ये इलाका ‘नॉर्दन एलायंस’ लड़ाकों का गढ़ है, जिन्होंने 2001 में तालिबान के खिलाफ अमेरिका से हाथ मिलाया था। यह एकमात्र प्रांत है जो अभी तक तालिबान के हाथ नहीं आया है। इस स्थान पर जुटे नेताओं में बेदखल सरकार के उप राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह, रक्षा मंत्री बिस्मिल्लाह मोहम्मदी और नॉर्दन एलायंस के पूर्व नेता अहमद शाह मसूद का बेटा अहमद मसूद शामिल हैं। इनका दावा है कि बड़ी संख्या में मुजाहिदीन और पूर्व सरकार के सैनिक उनके साथ हैं।

अफगान नेशनल रेजिस्टेंस फ्रंट के नेता अहमद मसूद ने तालिबान के खिलाफ संघर्ष जारी रखने का ऐलान करते हुए पिता की राह पर चलने की जज्बा दिखाया है। अफगानिस्तान के सबसे प्रसिद्ध तालिबान विरोधी लड़ाके के बेटे का कहना है कि उसके पास एक प्रभावी प्रतिरोध करने के लिए ताकत है, लेकिन तालिबान को हराने के लिए ज्यादा हथियार और साजो-सामान चाहिए। इसके लिए उसने अमेरिका से हथियार और गोला-बारूद की सप्लाई करने का आह्वान किया। वाशिंगटन पोस्ट के मुताबिक, अहमद मसूद ने कहा, “अमेरिका अभी भी हमारे लड़ाकों का समर्थन करके लोकतंत्र का एक बड़ा संरक्षक बन सकता है। मैं आज पंजशीर घाटी से लिख रहा हूं, मैं अपने पिता के नक्शेकदम पर चलने के लिए अपने मुजाहिदीन लड़ाकों के साथ, एक बार फिर तालिबान से मुकाबला करने के लिए तैयार हूं।”

अहमद मसूद के अलावा अफगानिस्‍तान के उपराष्‍ट्रपति अमरुल्‍लाह सालेह ( Amrullah Saleh )ने भी तालिबान के खिलाफ संघर्ष जारी रखने का ऐलान किया है। अफगानिस्तान के कार्यवाहक राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह ने ट्वीट कर कहा, “राष्ट्रों को कानून के शासन का सम्मान करना चाहिए, हिंसा का नहीं। अफगानिस्तान इतना बड़ा है कि पाकिस्तान निगल नहीं सकता और तालिबान उस पर शासन कर नहीं सकता। अपने इतिहास को आतंकवादी समूहों के लिए अपमान और झुकने का अध्याय न बनने दें।”

सालेह ओर मसूद के बेटे को अमेरिका और अन्य देशों का सहयोग मिला, तो अफगानिस्तान में तालिबानी शासन का अंत हो सकता है और यहां लोकतंत्र की स्थापना की दगुंजाइश बनती है। अच्छी बात ये है कि अब अफगानिस्तान की जनता भी तालिबानी शासन के बजाय अफगानी झंडे को तरजीह दे रही है। अफगानिस्तान में कई जगहों पर लोग तालिबान के खिलाफ खड़े हो रहे हैं।

 

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