पन्ना,भास्कर हिंदी न्यूज़/ पूरी दुनिया के लिए एक मिशाल बन चुके मध्य प्रदेश के पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघ का जन्म दिवस मनाने की अनूठी परम्परा रही है परंतु इस वर्ष गंभीर रूप से बढ़ते हुए कोरोना संक्रमण के कारण यह परम्परा टूट गई। बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से आबाद करने की अभिनव पहल शुरू होने के वाला वह दिन आ गया, जब बांधवगढ़ से पन्ना लाई गई बाघिन टी-1 ने 16 अप्रैल 2010 को अपनी पहली संतान को जन्म दिया। नन्हे बाघ शावकों के जन्म की खबर से पन्ना वासी जहां झूम उठे वहीं पन्ना टाईगर रिजर्व के जंगल में मानों बहार आ गई। कामयाबी की खुशी वाले इसी दिन की मधुर याद में 16 अप्रैल को प्रति वर्ष प्रथम बाघ शावक का जन्मोत्सव मनाया जाता है। लेकिन इस वर्ष कोरोना संकट के चलते परम्परानुसार जन्मोत्सव मनाने के लिये कोई आयोजन नहीं होगा। फिर भी वन्यजीव प्रेमी अपने घर में रहते हुये प्रकृति, पर्यावरण और वन्यप्राणियों की सुरक्षा व संरक्षण की कामना करते हुये इस दिन की मधुर स्मृतियों को जरूर तरोताजा करेंगे।
अनूठी परम्परा: दस साल से मनाया जा रहा जन्मदिन
बाघ पुनर्स्थापना योजना की चमत्कारिक सफलता और प्रथम बाघ शावक के जन्म के बाद यह अनूठी परम्परा शुरू हुई। पन्ना में बाघ का जन्म दिन मनाए जाने की परंपरा 10 वर्ष पूर्व तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति द्वारा शुरू की गई थी। मालूम हो कि वर्ष 2009 में बाघविहीन होने के बाद पन्नाा टाईगर रिजर्व में बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत संस्थापक बाघों को बाहर से पन्ना लाया गया था। श्री मूर्ति के अथक प्रयासों व कुशल प्रबंधन के परिणामस्वरूप पन्ना टाईगर रिजर्व न सिर्फ बाघों से आबाद हुआ अपितु उनका पन्नाा से स्थानांतरण होने के बाद यहाँ जितने क्षेत्र संचालक आये सभी ने सक्रिय प्रयासों व बेहतर प्रबंधन से बाघों के कुनबे में निरंतर विस्तार हेतु श्रेष्ठतम योगदान दिया है।
परिणाम स्वरूप अब इन वन क्षेत्रों में भी न सिर्फ बाघ विचरण कर रहे हैं, अपितु यहाँ बाघ अपना ठिकाना बनाकर प्रजनन भी कर रहे हैं। यह जानकर सुखद अनुभूति होती है कि पन्ना के जंगलों में मौजूदा समय आधा सैकड़ा से भी अधिक बाघ स्वछंद रूप से विचरण कर रहे हैं। मालूम हो कि प्रदेश का पन्नाा टाइगर रिजर्व प्रबंधकीय कुव्यवस्था और अवैध शिकार के चलते वर्ष 2009 में बाघविहीन हो गया था। बाघों का यहाँ से पूरी तरह खात्मा हो जाने पर राष्ट्रीय स्तर पर पन्ना टाइगर रिजर्व की खासी किरकिरी हुई थी। बाघों के उजड़ चुके संसार को यहाँ पर फिर से आबाद करने के लिए बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत कान्हा व बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से बाघिन व पेंच टाइगर रिजर्व से एक नर बाघ लाया गया था। बाघिन टी-1 ने पन्ना आकर 16 अप्रैल 2010 को अपनी पहली संतान को जन्म दिया। इस ऐतिहासिक व अविस्मरणीय सफलता को यादगार बनाने के लिए 16 अप्रैल को हर साल प्रथम बाघ शावक का जन्म धूमधाम से मनाये जाने की परम्परा शुरू हुई जिससे जनभागीदारी से बाघों के संरक्षण को बल मिले। नन्हें बाघ शावकों के जन्म से पन्ना टाइगर रिजर्व का जंगल एक बार फिर पूर्व की तरह गुलजार हो गया है। बाघों के फिर से आबाद होने की इस सफलतम कहानी को याद करने तथा आमजनता में वन व वन्यप्राणियों के संरक्षण की भावना विकसित करने के लिए यहां जन्मे पहले बाघ शावक का जन्मदिन अब पन्ना टाईगर रिजर्व के लिए एक पर्व बन चुका है। जिसे प्रत्येक वर्ष बडे ही धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता रहा है। बाघ का जन्मदिन मनाये जाने की ऐसी अनूठी परम्परा शायद अन्यत्र कहीं नहीं है।
इनका कहना है
कोरोना संक्रमण की बढ़ती रफ्तार व खतरे को देखते हुए बाघ शावक का जन्मदिवस नहीं मनाया जाएगा।
-उत्तम कुमार शर्मा, क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व।