हम लोग व्यापार के बारे में जरूरत से ज्यादा सोचने लगे हैं। सरकारें भी सुबह से शाम तक सिर्फ व्यापार व्यापार करती रहती हैं। ये वाले बिजनेस के लिए ये किया, वो वाले बिजनेस के लिए वो किया। ऐसा लगता है सरकारें व्यापारियों के दलाल के रूप में आ चुकी हैं।
क्या जीवन के बाकी सारे उद्देश्य समाप्त हो चुके हैं और सिर्फ व्यापार ही शेष बचा है? आज से बीस साल पहले सरकारें इस तरह दिन रात व्यापार व्यापार नहीं करती थीं। यहां तक कि मनमोहन के समय में भी इतना व्यापार व्यापार का रट्टा नहीं लगता था लेकिन जब से मोदी प्रधानमंत्री बने हैं चारों तरफ सिर्फ व्यापार का ही शोर है।
भारत को अमेरिका और यूरोप की तर्ज पर सिर्फ बाजार के रूप में नहीं देखा जा सकता। व्यापार हर युग में जरूरी रहा है और इस युग में भी जरूरी है लेकिन सिर्फ व्यापार की बात करना हमारे जीवन के बाकी पक्षों को ढंक देने जैसा है।
भारत को सिर्फ बाजार के रूप में विकसित करने से भारत खत्म हो जाएगा। हम सिर्फ बाजार नहीं है जहां सुबह से शाम तक सरकारें सिर्फ व्यापार की ही बातें करेंगी। हम समाज हैं। एक ऐसे समाज जिसमें इतनी विविधता है कि विश्व की विविधता छोटी पड़ जाए। क्या दिन रात बिजनेस बिजनेस करते हुए हम एक समाज के रूप में समाप्त नहीं हो रहे हैं?
मानव जीवन का उद्देश्य व्यापार नहीं है। मानव जीवन का उद्देश्य शांत और सुखमय जीवन है जो कि कभी किसी बाजारवादी व्यवस्था में संभव नहीं। सुख और शांति ये समाज में ही संभव है। इसलिए सुखी रहना है तो एक सीमा से ज्यादा व्यापार के बारे में बात भी न करें। सरकारों को भी जीवन के दूसरे पहलुओं पर बात करना चाहिए। दिन रात कारोबार और व्यापार के फर्जीवाड़े में लोगों के मन मानस को नहीं फंसाना चाहिए।