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इस ‘गणतंत्र’ पर आइये….शपथ लें

विशेष संपादकीय

मंगलवार को हम भारतवासी 71 वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहे हैं। सात दशकों की यात्रा में हमारे गणतंत्र दिवस की चमक दिनों-दिन बढ़ती ही रही है। विश्व में भारत की पहचान आज एक सक्षम और मजबूत जनतांत्रिक देश की है। आज देश एक समृद्ध विकास के पथ पर अग्रसर है और दूसरे देशों के लिए प्रेरणास्त्रोत भी, कि किस तरह हमने प्राकृतिक आपदाओं में, आर्थिक मंदी के डरावने सपनों में, विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 में और देश के भीतर अलगाववादी ताकतों की जंग के बीच किस तरह से अपने-आपको मजबूती से ख्रड़ा रखा है।

वर्ष 2021 का गणतंत्र बहुत खास मायने रखता है। 2021 साल ने हमें बहुत सी ऐसी पीड़ाएं दीं हैं जिन्हें यदि कुरेदा जाये तो ‘जन’ में ‘गणतंत्र’ का उत्साह कहीं फीका न पड़ने लगे। इसलिए बीती ताहि बिसार दे, आगे की पुनि सोच वाली भावना रखते हुए सभी देशवासियों को एक साथ कदम से कदम मिला कर चलना होगा। आपको को भली भांति पता होगा कि जब सेना के जवान कदमताल करते हुए किसी पुल से गुजरने वाले होते हैं तो उन्हें कदम ताल तोड़ने के आर्डर दिये जाते हैं। इसका कारण सिर्फ इतना है कि सेना के जवान संख्या में भले कम हों लेकिन उनके सामूहिक कदमताल में इतनी ताकत होती है कि उनकी धमक और आवाज पुल को भी धराशाई करने की ताकत रखती है।

कोरोना काल में जिस तरह समूचे देश ने विपरीत परिस्थितियों में देश के प्रति अपनी भावनाओं को एकजुट रखा यह दूसरे देशों के लिए विमर्श का विषय बन चुका है। भारत के अतिरिक्त वैश्विक महामारी कोरोना के दौर में विश्व के किसी भी देश में इतनी सामूहिक एकजुटता नहीं देखी गई, कि लाकडाउन के दौरान लोग हजारों मील पैदल चले, गंतव्य तक पहुंचे और फिर एक-दूसरे का हाथ, हाथो में लेकर अपनी जीवनचर्या में जुट गये।

भारत से ही प्रेरणा लेकर अमेरिका जैसी महाशक्ति ने ट्रंप जैसे कथित ‘तानाशाह’ को व्हाइट हाउस से बाहर का रास्ता दिखा दिया। बाइडेन के हाथ में अमेरिका की सत्ता आई और कमला हैरिस ने भारत का सर और भी गर्वीला कर दिया। भारतीय वैज्ञानिक कोरोना से लड़ते हुए वैक्सीन बनाने में जुटे रहे, परिणाम सबके सामने है वायरस को तहस-नहस करने वाला वैक्सीन न सिर्फ भारत के लोगों को लगाया जा रहा है बल्कि उन्हें पड़ोसी देशों तक भी पहुंचाया जा रहा है। यह भारत की सौहार्द्रता से ही संभव है।

थोड़ा तकलीफ भी है कि देश के लाखों किसान इस 71 वें गणतंत्र में उल्लासित नहीं है अपितु सरकार के कृषि फार्म बिल के विरोध में बीते 60 दिनों से दिल्ली-हरियाणा के चारों तरफ खुले आसमान, हाड़ कंपाती शीतलहर के बीच अपनी मांगो को लेकर डेरा डाले हुए हैं। थोड़ा हैरानी भी होती है कि आखिर सरकार उनकी सुन क्यों नहीं रही? क्या अन्नदाता से बड़ा ओहदा रखता है कृषि फार्म बिल? यह सवाल समूचे देशवासियों के मन को कई दिनों से उद्वेलित किये हुए है। अन्नदाता यदि सड़कों पर रहेगा तो देशवासी कहां जायेंगे? अन्नदाता की मेहनत से ही हमारे पेट में अन्न जाता है। सरकार को उनकी सुननी चाहिए।

यह सही है कि मार्ग में अवरोध आते हैं परंतु अवरोधों को सावधानी पूर्वक पार भी किया जाता है। हठधर्मिता छोड़ कर किसानों और सरकार को इस पर विचार करना चाहिए कि क्या गलत है और क्या सही!भारतीय अर्थव्यवस्था को पिछले कई वर्षों से दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्थाओं में गिना जा रहा है। हालांकि कोरोना की वजह से इसकी गति अवरुद्ध हुई है परंतु यह सिर्फ हमारे साथ नहीं है, विश्व के कई देशों की अर्थव्यवस्था इससे डगमगाई है। ईज आफ डूइंग बिजनेस के मामले में भी पिछले दो-तीन वर्षों में देश ने लंबी छलांगें लगाई हैं। जीएसटी के जरिए देश में अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में एकरूपता आई है। शुरू में इससे कुछ परेशानियां हुईं लेकिन अभी इस बात को लेकर आम सहमति है कि इससे कारोबार में पारदर्शिता बढ़ी है। लेन-देन की प्रक्रिया में डिजिटलाइजेशन बढ़ना भी एक बड़ी उपलब्धि है।

विकास प्रक्रिया में पीछे छूटने वाले वर्गों पर व्यवस्था का फोकस बढ़ा है। किसान की बेहतरी लिए आज सरकार ही नहीं, विपक्ष भी चिंतित है और खेती को फायदेमंद बनाने के रास्ते खोजे जा रहे हैं। महिलाओं की भागीदारी हर क्षेत्र में बढ़ी है। हाल में उन्हें मिलिटरी पुलिस में जवान के रूप में शामिल करने का फैसला किया गया है। मामले का दूसरा पहलू यह है कि इधर हमारी व्यवस्था में कुछ दरारें उभरती दिखी हैं जो चिंता का विषय है। पहली बार नागरिकता की ऐसी परिभाषा सामने आई है जिसका संवैधानिक मूल्यों के साथ कोई मेल नहीं दिखता। अरसे बाद एक पार्टी के बहुमत वाली केंद्र सरकार के कुछेक फैसलों के प्रतिवाद स्वरूप देश में संघवादी शक्तियां मजबूत होती दिख रही हैं। सरकारी नीतियों के विरोध में उठती आवाजों को राजद्रोह बताने का चलन बढ़ा है और अल्पसंख्यक समुदायों में भय का एक तत्व भी दिखाई पड़ रहा है। ऐसा नहीं होना चाहिए। भारतीय गणतंत्र समूचे विश्व के लिए सम्मानीय है। इसकी गरिमा बनाये रखने का दायित्व जितना जनप्रतिनिधियों, सेना, प्रशासनिक सेवा से जुड़े अधिकारियों, कर्मचारियों का है उतना ही हम सब देशवासियों का भी। आइये..इस गणतंत्र दिवस पर हम शपथ लें कि चाहे कितनी भी विपरीत स्थिति क्यों न आ जाये, हमारा संविधान गरिमामय रहेगा और तिरंगा पूरी शान से विश्व के आसमान में लहराता रहेगा।

इन्हीं शुभेच्छाओं के साथ आप सबकों गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

                                                                                                  ऋषि पंडित

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