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Kaagaz Movie Review: मनोरंजन की कसौटी पर औसत

फ़िल्म-कागज़

  • निर्माता -सलमा खान
  • निर्देशक -सतीश कौशिक
  • कलाकार -पंकज त्रिपाठी, सतीश कौशिक, मीता वशिष्ठ,अमर उपाध्याय, एम मोनल गज्जर और अन्य
  • प्लेटफार्म -ज़ी 5
  • रेटिंग -ढाई

Kaagaz Movie Review :digi desk/BHN/ मल्टीस्टारर फिल्मों में महत्वपूर्ण किरदार निभाने वाले उम्दा अभिनेता पंकज त्रिपाठी के लिए कागज़ (Kaagaz) खास है क्योंकि इस फ़िल्म ने उन्हें लीड हीरो के तौर पर खास पहचान दे दी है. रियलिस्टिक तरीके से अपने किरदारों को निभाने वाले पंकज त्रिपाठी की यह लीड हीरो वाली फिल्म कागज़ एक सच्ची कहानी से प्रेरित है.

यह फ़िल्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के लाल बिहारी मृतक की कहानी है. उनके चाचा ने संपत्ति हासिल करने के लिए उन्हें कागजों में मृत्य घोषित करवा दिया था. जिसके बाद लाल बिहारी ने कागजों में जिंदा होने के लिए 18 सालों का लंबा संघर्ष किया और कागज़ पर अपने अस्तित्व को आखिरकार साबित कर दिया. इसी कहानी को परदे पर 70 के दशक से शुरू करते हुए 18 सालों के सफर में दिखाया गया है.

फ़िल्म की कहानी के नरेशन में इमरजेंसी, राजेश खन्ना और बिनाका गीतमाला को खूबसूरती से जोड़ा गया है. कहानी का ट्रीटमेंट बहुत सिंपल है जो इसे खास बनाता है लेकिन स्क्रिप्ट की सबसे बड़ी चूक यह रह गयी है कि फ़िल्म देखते हुए आप ना तो किरदार के दर्द से कनेक्ट ही हो पाते हैं और ना ही फ़िल्म का ट्रीटमेंट इस अंदाज में किया गया है कि सिस्टम पर तंज कसे और आपको हंसी आए. फ़िल्म इसके बीच में रह गयी है और मनोरंजन की कसौटी पर औसत. फ़िल्म की गति धीमी है. कई दृश्यों का दोहराव हुआ है. फ़िल्म से जुड़ा संदेश ज़रूर खास है.यह फ़िल्म आम आदमी के सिस्टम से संघर्ष को सलाम भी करता है.

अभिनय पक्ष की बात करें तो यह इस फ़िल्म की सबसे बड़ी खासियत है. पंकज त्रिपाठी ने एक बार फिर पूरी सहजता और सरलता के साथ अपने किरदार को परदे पर जिया है. पंकज त्रिपाठी का अभिनय ही है जो कमज़ोर स्क्रिप्ट वाली इस फ़िल्म को बोझिल नहीं होने देता है. बाकी के किरदारों में पंकज की पत्नी बनी मोनल और वकील की भूमिका में नज़र आए सतीश कौशिक ने उनका बखूबी साथ दिया है. मीता वशिष्ठ औऱ अमर उपाध्याय को फ़िल्म में करने को कुछ खास नहीं था. बाकी के किरदार अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय करने में सफल रहे हैं.

फ़िल्म के गीत संगीत की बात करें तो गावों के परिवेश और कहानी के साथ वह पूरी तरह से वह न्याय करते हैं. संवाद चुटीले हैं।फ़िल्म के दूसरे पक्षों की बात करें तो प्रोडक्शन क़्वालिटी पर काफी डिटेलिंग के साथ काम किया गया है. भाषा ,रहन सहन से लेकर सामाजिक ताना बाना काफी अच्छे से परदे पर बुना गया है. जिसकी तारीफ करनी होगी.

कुलमिलाकर ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज होने वाली यह फ़िल्म दूसरी फिल्मों से कंटेंट और ट्रीटमेंट की वजह से अलग है. जिसे पूरे परिवार के साथ देखा जा सकता है और पंकज त्रिपाठी का उम्दा अभिनय भी है जो स्क्रिप्ट की खामियों के बावजूद फ़िल्म को एंगेजिंग बनाती है.

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