रायपुर
दुनिया के लिए रो कर देख लिया, कोई काम का नहीं, रोना है तो एक बार गोविंद के लिए रो कर देखो। व्यक्ति को भागते-भागते 50 साल हो जाता है लेकिन अंत में उससे पूछो कि क्या हासिल किया तो कुछ भी नहीं। रोना आ जाए। कहते है हमारे वृंदावन में एक महात्मा थे, जब वे कथा कहते तो बड़े-बड़े संत-महात्मा कथा सुनने आते थे और उनकी आँखों से झरने बहते थे। जिन आँखों से आंसू नहीं निकले उन आँखों को दंड देना चाहिए लेकिन दंड देने वाली आँखें आज पहली बार देखा कि कथा सुनने के दौरान आँख से आंसू नहीं निकल रहे थे तो उन्होंने मिर्ची पाउडर डालकर आंसू निकाले। एक समय ऐसा था जब हमें अपने जीवन में गुरु और सत्य की कृपा होती थी लेकिन अब हम अपनी पत्नी, पुत्र, पिता और परिवार में ही खोये रहते हैं। जब गोविंद तेरी कथा के बिना हम रह नहीं पाते है यह सोचकर आँखों में आंसू आ जाए तो जीवन धन्य हो जायेगा।
श्याम खाटू मंदिर समता कॉलोनी में भागवत कथा प्रसंग पर बोलते हुए कथा व्यास डा. संजय सलिल ने कहा कि किसी संत के चरण छूने नहीं चाहिए, महिमा चरणों की नहीं है महिमा तो चरणों के रज की है। चरण के साथ आचरण भी सुंदर होना चाहिए। संतों की एडि?ां फटी रहती है, नाखून बढ़े रहते है फिर भी उनके पैर छूने के लिए हम उनकी गाडि?ों तक चले जाते है। दूसरी तरफ हम है कि दिन भर पैर में जूते और मोजे पहने होने से साफ सुथरे रहते है लेकिन हमारे साफ पैरों को छूने के लिए हमारा पुत्र भी तैयार नहीं होता।
किसी पीए हुए व्यक्ति को कभी देखा है, कल रात यहां वॉक कर रहे थे तो हमने उन्हें देखा, पीने वाला जब चलता है न तो उसके पैर हमेशा लड़-खड़ाते रहता है और वह गिरते-पड़ते रहता है। इसलिए भगवान कहते है कि जितने मेरे भक्त है न सब पीए हुए रहते है। मेरे नाम के नशे में रहते है और जब नाम के नशे में वह फूदक-फूदक कर नाचने लगते है और उनके पैर से उड़ी हुई धूल उन पर गिरती है तो श्री गोविंद कहते है मैं धन्य हो जाता हूं, इसलिए वे भगवत नाम पीने वालों के पीछे-पीछे चलते रहते है।
प्रेत की निवृत्ति न पिंड दान से हुई और न ही गया श्रद्धा से और न ही किसी भी अन्य साधन से हुई। प्रेत की निवृत्ति शिव तत्व से हुई। जिन परिवारों में पितृ दोष होता है उस दोष की निवृत्ति का एक मात्र उपाय शिव तत्व है। मूर्तिकार लोहे, लकड़ी, सोने, चांदी का मूर्ति बनाता है लेकिन वेद व्यास जी ने भगवान कृष्ण की वास्तविक मूर्ति बनाई। भक्त प्रहलाद है जिनको भगवान का दर्शन खंभे में भी हो जाता है। हमको तो मंदिर में भी भगवान का दर्शन नहीं होता है। एक सुदामा है जिनको गोंविद हमेशा दिखता है, और कोई ऐसा प्रेमी यहां बैठा हो कथा सुनने के लिए जिसके पास गोविंद स्वयं बैठकर कथा सुनते है।