- -दशकों से है आस्था का केन्द्र
- -स्वामी नीलकंठ महाराज ने की थी तपस्या
सतना, भास्कर हिंदी न्यूज़/ समूचे विंध्य अंचल की पहचान व पूरे देश के लोगों की आस्था का केंद्र मां शारदा की नगरी मैहर के पीछे स्थित घाटी में भगवान गणपति ने चट्टान में उभर कर लोगों को हतप्रभ कर दिया था। कई दशकों बाद आज भी विघ्नहर्ता भगवान गजानन के दर्शन उस चट्टान में होते हैं। यह पवित्र स्थल अब लोगों की आस्था का केंद्र बन गया है। हालांकि प्रशासन की बेरुखी के चलते भगवान गणपति के दर्शनीय स्थल तक पहुंचने का सुगम मार्ग नहीं बन पाया है बावजूद लोग तमाम तरह की मुसीबतों का सामना कर गणेश घाटी के नाम से प्रचलित वन परिक्षेत्र में स्थित मंदिर में गजानन के अनोखे प्राकट्य के दर्शन करने पहुंचते हैं। गणेश चतुर्थी से प्रारंभ दस दिवसीय गणेशोत्सव के दौरान इस पवित्र स्थल का महत्व और बढ़ जाता है और लोगों की भारी भीड़ विघ्नहर्ता के दर्शन के लिए पहुंचती है।
-गणेश घाटी के नाम से जाना जाता है स्थान
जिला मुख्यालय से 30 कि.मी दूर मैहर में मां शारदा देवी मंदिर के पीछे रामपुर पहाड़ी से कल्दा की ओर जाने वाले मार्ग में जंगल के बीच भगवान गणपति का पवित्र मंदिर है। पहाड़ी के बीच इस स्थान को गणेश घाटी के नाम से जाना जाता है। इसी स्थान पर एक शिला मे प्रथम पूज्य भगवान गणेश की आकृति उभर आई थी। जैसे ही इसकी जानकारी लोगों की लगी। लोगों ने उक्त स्थान को दर्शनीय बनाने के प्रयास शुरू कर दिये। अब इस जगह पर मंदिर का निर्माण जनसहयोग से करा दिया गया है। रोजाना सैकड़ों की संख्या में भक्त भगवान गणेश के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं।
-स्वामी नीलकंठ महाराज की तपोस्थली
गणेश घाटी के आसपास निवास करने वाले बुजुर्ग बताते हैं कि प्रख्यात तपस्वी स्वामी नीलकंठ महाराज ने वनाच्छादित इस क्षेत्र को अपनी तपोस्थली बनाया था। कहा जाता है कि स्वामी नीलकंठ महाराज 1935 में इस क्षेत्र में बसेरा करते थे उस समय उन्हें भगवान ने स्वप्न में दर्शन दिए थे। इसके बाद स्वामी नीलकंठ महाराज गणेश घाटी के उस स्थान पर पहुंचे जहां पर भगवान गणेश की आकृति पत्थर की एक शिला पर उभर आई थी, स्वामी नीलकंठ महाराज उस शिला की पूजा-अर्चना करने लगे।
..और बढऩे लगा चट्टान का आकार
कहा जाता है कि स्वामी नीलकंठ महाराज की पूजा-उपासना से धीरे-धीरे चट्टान का आकार बड़ा होता चला गया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार आज भी विघ्नहर्ता की उभरी आकृति वाली शिला का आकार समय-समय पर परिवर्तित होता रहता है। स्वामी नीलकंठ महाराज मैहर स्थित पुरानी कुटी में वर्ष 1912 में आये थे, जहां उन्होंने वनवासी रहते हुए अपनी तपस्या और आराधना का केंद्र बना लिया। आज भी यह भूमि तपोभूमि कहलाती है।
-बालयोगी श्री रामजी उदासीन महाराज को सौंपी विरासत
स्वामी नीलकंठ महाराज ने बाद में अपने शिष्य महान संत श्रीश्री 1008 श्री रामजी उदासीन को तपोभूमि की विरासत सौंप दी। रामजी उदासीन बाल रूप से ही बाल योगी कहे जाते थे। वे आज भी पुरानी कुटी के कर्ता-धर्ता हैं। मैहर नगरी व इसके आसपास स्थित ग्रामीण अंचलों व दूरदराज से लोग अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पुरानी कुटी पहुंचते हैं। मां शारदा देवी मंदिर त्रिकूट पर्वत के पहाड़ी के पीछे बनी पुरानी कुटी आज भी श्रद्धा और आस्था का केंद्र बनी हुई है।
-चारों दिव्य स्थानों का संगम है पुरानी कुटी
पुरानी कुटी रामपुर पहाड़ राधा कृष्ण मंदिर मैहर में स्थित ओइला आश्रम और गणेश घाटी यह चारों दिव्य स्थान एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। यहां पर जो भी साधु संत देख-रेख कर रहे हैं वह स्वामी नीलकंठ के ही शिष्य और अनुयायी हैं। इन्हें स्वामी नीलकंठ के बाद महंत की उपाधि देकर आश्रम की देखरेख के लिए नियुक्त किया गया था। स्वामी नीलकंठ महाराज पुरानी कुटी में जिस स्थान पर तपस्या करते थे वह स्थान आज भी करीब 20 फीट गहरी गुफा में सुरक्षित है।
-शिला का आकार परिवर्तित होने की पुष्टि पुरातत्व विभाग भी करता है
गणेश घाटी में स्थित लगभग 90 वर्ष पुराने इस मंदिर का जीर्णोद्धार ना होने से मंदिर की स्थिति जर्जर हो गई थी जिसे स्थानीय लोगों की सहायता से निर्माण कराकर व्यवस्थित किया गया है। आज भी भगवान गणेश जिस चट्टान में उभरे हुए है वह शिला यथावत है। समय के साथ-साथ इस शिला का आकार व स्वरूप बदल रहा है इस बात की पुष्टि पुरातत्व विभाग द्वारा भी की गई है एवं पर्यटन विभाग के नक्शे में भी यह मंदिर दर्ज है।
-तमाम मुसीबतों पर आस्था भारी
आज भी इस ऐतिहासिक मंदिर में बिजली, पानी की समस्या बनी हुई है। प्रशासनिक अधिकारियों की अनदेखी की वजह से इस स्थान का विकास ना होना एक निराशा का विषय है। यह लोगों की आस्था और दर्शन का बड़ा केंद्र है जहां दूर-दूर से लोग आने वाले त्रिकूट पर्वत पर विराजीं मां शारदा देवी के दर्शन करने के बाद रामपुर पहाड़ जाते हैं। रास्ते में पडऩे वाले इस गणेश घाटी में शिला पर उभरे भगवान गणपति के दर्शन करना भी सौभाग्य समझते हैं। आश्रम के सेवक पप्पू सिंह बघेल ने बताया कि इस स्थान पर व कई वर्षों से आ रहे हैं, लेकिन बिजली न होने के कारण अव्यवस्था बनी रहती है, जिसके चलते जीव जंतुओं का खतरा बना रहता है। बावजूद इसके भारी संख्या में श्रद्धालु यहां पर दर्शनों के लिए पहुंचते हैं।