- साल इस खूनी मेले में सैकड़ों लोग घायल हो जाते हैं। अब तक 12 लोगों की जान भी जा चुकी है
- अमावस्या पोले के दूसरे दिन विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेले का आयोजन किया जाता है
- गोटमार मेले का स्वरूप बदलने मानव आयोग, उच्च न्यायालय के आदेश के परिपालन में जिला प्रशासन को सख्त निर्देश होते हैं
Madhya pradesh chhindwara gotmar mela gotmar mela on friday in chhindwara district 12 people have died so far due to stone pelting: digi desk/BHN/छिंदवाड़ा/पांढुर्णा/ विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेले का आयोजन शुक्रवार को किया जाएगा। हर साल इस खूनी मेले में सैकड़ों लोग घायल हो जाते हैं। अब तक 12 लोगों की जान भी जा चुकी है। इस बार चर्चा है कि स्थानीय पुलिस अधिकारी नए हैं। इन अधिकारियों को गोटमार मेले के आयोजन की ठीक से कोई जानकारी नहीं है हालांकि जिला और स्थानीय प्रशासन ने गोटमार मेले की तैयारियों की औपचारिकता पूर्ण की है।
एक-दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं दो पक्ष के लोग
अमावस्या पोले के दूसरे दिन शहर में विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेले के आयोजन को लेकर शहर में जमकर उत्साह का वातावरण है। वही दूसरी ओर शहर के कुछ घरों के परिवार के लोगों में अपनों के खोने का दर्द भी है। मेले में सुबह पांढुर्ना-सावरगांव स्थित जाम नदी के तट पर दो पक्षों के बीच एक-दूसरे पर पत्थर बरसाए जाते हैं।
कुल परिवार इसे काला दिन मानते हैं
गोटमार मेले के प्रति धार्मिक आस्था के सामने पत्थरों की बौछार और खूनखराबा कोई मायने नहीं रखता। शहर में कुछ परिवार गोटमार मेले को काला दिन मानते हैं।
आदेश के बाद भी नहीं बदला स्वरूप
गोटमार मेले का स्वरूप बदलने मानव आयोग, उच्च न्यायालय के आदेश के परिपालन में जिला प्रशासन को सख्त निर्देश होते हैं। परन्त्तु विगत कई वर्षों के प्रयासों के बाद जिला प्रशासन आखिरकार गोटमार मेले का स्वरूप बदल पाने में नाकाम साबित हो रहा है। हालांकि शहर के बुद्धिजीवी और गणमान्य लोगों का कहना है कि मानव आयोग दिशानिर्देश देता है और जिला प्रशासन पालनार्थ प्रति वर्ष यह गोटमार मेले का आयोजन जैसे-तैसे पूर्ण कर अपना प्रतिवेदन मानव आयोग को सौंप देता है।
बदलाव के पक्ष में हैं लोग
लोगों का मानना है कि मेले में आ रही विसंगति को धीरेधीरे बदलने का प्रयास करना चाहिये, तो निश्चित ही मेले का स्वरूप बदलेगा। वर्षों पुराने अनुभव से यह समझ में आया है कि प्रति वर्ष के मेले के आयोजन में जिला प्रशासन के अधिकारी बदलते हैं। जिसकी वजह मेले का स्वरूप बदलने की जगह मेले में विसगंतियां बढ़ रही हैं।
पहले प्रेम की लिए लड़ाई अब धार्मिक आस्था की कहानी
पांढुर्णा गोटमार मेले का इतिहास वर्षों पुराना है। इसका वास्तविक इतिहास किसी को नहीं पता है। इसे पांढुर्णा के युवक और सावरगांव की युवती के बीच प्रेम कहानी माना जाता है, वहीं कुछ का कहना है कि गोंड राजा जाटबा नरेश और अंग्रेजों के बीच साम्राज्य की लड़ाई में गोंड राजा के हथियार खत्म हो जाने के चलते जाटबा नरेश की सेना ने जाम नदी के किनारे पत्थरों के सहारे अंग्रेजों से कई दिनों तक गोटमार कर अपना साम्राज्य बचने का प्रयास किया था। गोटमार मेला धार्मिक आस्था का केंद्र बन गया है। दोनों पक्ष के लोगों के आमनेसामने एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं। कई लोगों की जान गई है, लेकिन यह परंपरा जारी है।
गोफन और शराब प्रतिबंध
गोटमार मेले में पुलिस और आबकारी विभाग के वरिष्ठ अधिकारी को मेला स्थल पर गोफन से पत्थर चलाने वाले लोगो पर नजर बनाए रखने और मेला के दौरान 24 घंटे पहले जिला कलेक्टर अधिकारी बिंदुवार सख्त आदेश जारी कर धारा 144 लागू कर चुके हैं। परन्तु गोटमार मेले में प्रतिबंध के बाद गोफन (रस्सी से पत्थर बांधकर फेंकने) वाले व्यक्ति को डोन कैमरे की मदद से चिन्हित कर पहचान के बाद कड़ी कार्रवाई की जाने की बात कही है।
प्रति वर्ष इस आयोजन पर मानव अधिकार आयोग की पैनी नजर होती है। जिला और स्थानीय प्रशासन के अधिकारी गोटमार मेला स्थल पर स्वास्थ्य सुविधा सुरक्षा में जगह-जगह पुलिस कर्मचारियो को तैनात किया जाता है। जिसमें दस मजिस्ट्रेट और 750 की संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया है। गोटमार में घायल होने वालों खिलाड़ियों के लिए भी 4 चिकित्सा कैंप लगाए जाते हैं। पुलिस, राजस्व और आबकारी विभाग की टीम अवैध शराब पर रोक लगाने अवैध शराब ठिकानों के अड्डो पर करवाई कर रहे है।
12 लोगों की जा चुकी है जान
गोटमार मेले में 12 लोगों की हुई मौत का इतिहास है। धार्मिक मान्यता स्वरूप जाम नदी के बीच में पलाश का झंडा गाड़ा जाता है और दोनों ओर के खिलाडी एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं और जब तक यह पलाश का झंडा पांढुर्ना पक्ष के खिलाड़ी तोड़ते नहीं हैं। तब तक दोनों पक्ष के लोग एकदूसरे पर पत्थर बरसाते हैं।
अब तक हुई मौत
- 1955 – महादेवराव सांबारे – सांवरगांव पेठ
- 1978 – देवराव सकरडे – ब्राम्हनी
- 1979 – लक्ष्मण तायवाड़े – शुक्रवार बाजार
- 1987 – कोठिराम सांबारे – जाटबा वार्ड
- 1989 – विठ्ठल तायवाड़े – गुरुदेवा वार्ड
- 1989 – योगीराज चौरे – सांवरगांव पेठ
- 1989 – सुधाकर हापसे – पांढुर्ना
- 1989 – गोपाल चन्ने – पांढुर्ना
- 2004 – रवि गायकी – पांढुर्ना
- 2005 – जनार्दन सांबारे – पांढुर्ना
- 2008 – गजानन घुगुस्कर – पांढुना
- 2011 – देवानंद वघाले – पांढुर्ना