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Chandrayaan-3: क्यों हुई थी चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर की क्रैश लैंडिंग, इस बार क्या नया? ISRO ने किया खुलासा

National: with more fuel fail safe measures chandrayaan-3 to leap towards moon on friday: digi desk/BHN/नई दिल्ली/ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) शुक्रवार को चंद्रयान -3 के प्रक्षेपण के साथ चंद्रमा पर उतरने का एक और प्रयास करने के लिए तैयार है। इस बार का प्रक्षेपण ज्यादा ईंधन, कई असफलता-सुरक्षा उपायों और एक बड़ी लैंडिंग साइट से भरपूर होगा। सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी के चलते सितंबर 2019 में चंद्रयान-2 की क्रैश-लैंडिंग के बाद चंद्रयान-3 शुक्रवार को दोपहर 2:35 बजे उड़ान भरेगा। 

इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने सोमवार को इस बारे में विस्तृत जानकारी साझा की कि चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर जब चंद्रमा की सतह पर 500×500 मीटर लैंडिंग स्पॉट की ओर बढ़ रहा था, तब इसके साथ क्या गलत हुआ था। 

1- इंजनों ने अपेक्षा से ज्यादा जोर पैदा किया
एसआईए इंडिया द्वारा आयोजित इंडिया स्पेस कांग्रेस के मौके पर उन्होंने संवाददाताओं से कहा, (चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर को लेकर) कुछ प्राथमिक मुद्दे थे। एक तो हमारे पास पांच इंजन थे, जिनका इस्तेमाल वेग (वेलोसिटी) को कम करने के लिए किया जाता है, जिसे मंदता (रिटार्डेशन) कहा जाता है। इन इंजनों ने अपेक्षा से ज्यादा जोर विकसित किया। सोमनाथ ने कहा कि जब इतना अधिक जोर दिया जा रहा था, तो इस अंतर के कारण त्रुटियां कुछ समय के लिए जमा हो गई थीं।

2-सॉफ्टवेयर द्वारा सीमित थी विक्रम लैंडर को मोड़ने की क्षमता
इसरो प्रमुख ने कहा कि यह दूसरा मुद्दा है। सभी त्रुटियां जमा हो गईं, जो हमारी उम्मीद से कहीं अधिक थीं। इसको बहुत तेजी से मोड़ लेना पड़ा। जब यह बहुत तेजी से मुड़ने लगा, तो इसकी मुड़ने की क्षमता सॉफ्टवेयर द्वारा सीमित थी, क्योंकि हमने कभी इतनी हाई-रेट आने की उम्मीद नहीं की थी। 

3-विक्रम लैंडर के सफलतापूर्वक न उतरने की तीसरी वजह
उन्होंने कहा कि इसके असफल रहने का तीसरा कारण अंतरिक्ष यान को उतारने के लिए पहचानी गई 500 मीटर x 500 मीटर की छोटी लैंडिंग साइट थी। उन्होंने कहा, ‘विमान का वेग बढ़ाकर वहां पहुंचने की कोशिश की जा रही थी। यह लगभग जमीन के करीब था और वेग बढ़ता रहा।

इस बार क्या नया

लैंडिग साइट का बढ़ाया गया आकार
उन्होंने कहा कि चंद्रयान-2 में सफलता आधारित डिजाइन के बजाय अंतरिक्ष एजेंसी ने चंद्रयान-3 में विफलता आधारित डिजाइन का विकल्प चुना है। सोमनाथ ने कहा, ‘हमने लैंडिंग साइट को 500 मीटर x 500 मीटर से बढ़ाकर 2.5 किलोमीटर कर दिया है। यह कहीं भी उतर सकता है, इसलिए यह आपको एक विशिष्ट बिंदु को लक्षित करने के लिए सीमित नहीं करता है। यह केवल नाममात्र स्थितियों में एक विशिष्ट बिंदु को लक्षित करेगा। इसलिए, यह उस क्षेत्र के भीतर कहीं भी उतर सकता है।

चंद्रयान-3 में पहले से ज्यादा होगा ईंधन
उन्होंने बताया कि चंद्रयान-3 में अधिक ईंधन भी है ताकि इसमें यात्रा करने या फैलाव को संभालने या वैकल्पिक लैंडिंग साइट पर जाने की अधिक क्षमता हो। सोमनाथ ने कहा, ‘हमने बहुत सी विफलताओं को देखा सेंसर विफलता, इंजन विफलता, एल्गोरिदम विफलता, गणना विफलता। इसलिए, विफलता जो भी हो, हम चाहते हैं कि यह आवश्यक गति और दर पर उतरे। इसलिए, अंदर अलग-अलग विफलता परिदृश्यों की गणना और प्रोग्राम किया गया है।’ इसरो प्रमुख ने कहा कि विक्रम लैंडर के पास अब अन्य सतहों पर अतिरिक्त सौर पैनल हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह बिजली उत्पन्न करता रहे, चाहे वह कैसे भी उतरे।

इसरो के पूर्व प्रमुख कस्तूरीरंगन को श्रीलंका में दिल का दौरा पड़ा
इस बीच इसरो के पूर्व अध्यक्ष और नई शिक्षा नीति की मसौदा समिति के प्रमुख के कस्तूरीरंगन को श्रीलंका में दिल का दौरा पड़ा और उन्हें इलाज के लिए बेंगलुरु स्थानांतरित किया जा रहा है। उनकी हालत स्थिर बताई गई है। 83 वर्षीय कस्तूरीरंगन पहले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के चांसलर और कर्नाटक ज्ञान आयोग के अध्यक्ष रह चुके हैं। वह राज्य सभा के पूर्व सदस्य (2003 09) और अब समाप्त हो चुके भारत के योजना आयोग के पूर्व सदस्य रहे हैं। वह अप्रैल 2004 से 2009 तक नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज, बेंगलुरु के निदेशक भी रहे।

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