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MP: UP-MP के वन अधिकारी मिलकर करेंगे चीतों की निगरानी, ग्वालियर में NTCA की बैठक

Madhya pradesh bhopal up and mp forest officials will jointly monitor the movement of cheetah as ntca meeting in gwalior on monday: digi desk/BHN/भोपाल/चीता परियोजना में अब उत्तर प्रदेश के वन अधिकारियों को भी शामिल किया जा रहा है। दरअसल मध्य प्रदेश के श्योपुर स्थित कूनो नेशनल पार्क में बसाए गए दक्षिण अफ्रीकी चीते, कई बार पार्क की सीमा लांघ कर उत्तर प्रदेश और राजस्थान की सीमा वाले वन क्षेत्रों में प्रवेश कर चुके हैं। उन्हें तीन बार उत्तर प्रदेश की सीमा से ट्रैंकुलाइज करके वापस लाना पड़ा है। बार-बार ट्रैंकुलाइज करने के खतरे भी हैं। इसी वजह से यूपी के वन अधिकारियों को भी इस परियोजना में शामिल किया जा रहा है। अब उत्तर प्रदेश की सीमा में पहुंचने वाले चीतों की सुरक्षा वहां के मैदानी वन कर्मचारी करेंगे। इसके लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) उन्हें उपकरण भी देगा।

बैठक में बनेगी कार्ययोजना

चीतों की सुरक्षा के मुद्दे पर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्यों में परस्पर समन्वय के लिए एक बैठक बुलाई गई है। दोनों राज्यों के वन और एनटीसीए के अधिकारियों की सोमवार को ग्वालियर में होनेवाली बैठक में इसे लेकर एक कार्ययोजना तैयार की जाएगी। इसमें दोनों राज्यों के मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक, एनटीसीए के सदस्य सचिव एसपी यादव, महानिरीक्षक, चीता परियोजना संचालन समिति और कूनो पार्क प्रबंधन के सदस्य शामिल होंगे। बैठक में उत्तर प्रदेश के ललितपुर, झांसी सहित मध्य प्रदेश की सीमा से सटे अन्य जिलों के वन अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाएगी। सूत्र बताते हैं कि एनटीसीए के अधिकारी इस बात पर ज्यादा जोर दे रहे हैं कि चीता उत्तर प्रदेश की सीमा में जाता है, तो वह वहां सुरक्षित रहे और उसे आसानी से लौटाने की कोशिश की जाए।

राजस्थान से बनाई दूरी

चीतों की सुरक्षा को लेकर पहली बार एनटीसीए मध्य प्रदेश से बाहर के वन अधिकारियों को परियोजना में शामिल कर रहा है, पर इसमें राजस्थान को छोड़ दिया गया है। जबकि कूनो पार्क से राजस्थान की सीमा केवल 20 किमी दूर है। कहीं-कहीं तो यह इससे भी कम रह जाती है और खुले जंगल में छोड़े गए नौ में से कुछ चीते हमेशा राजस्थान की सीमा में रहते हैं। वहीं उत्तर प्रदेश की सीमा पार्क से 180 से दो सौ किमी दूर है। फिर भी राजस्थान के वन अधिकारियों से मदद लेने और उन्हें बैठक में शामिल नहीं करने पर मप्र के वन अधिकारी बोलने को तैयार नहीं हैं। वे इतना ही कहते हैं कि बैठक एनटीसीए ने बुलाई है।

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