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राजनीति में शुचिता लाए बिना देश की प्रगति को गति नहीं मिल सकती

विशेष संपादकीय”

ऋषि पंडित
(प्रधान संपादक )

हमारे राष्ट्र शिल्पियों ने शासन व्यवस्था चलाने के लिए संविधान लागू किया था। संविधान का आरंभ उद्देशिका से होता है। उद्देशिका में संविधान को लेकर कुछ आधारभूत स्थापनाओं के लिए भारतीय समाज की प्रतिश्रुति उल्लिखित हैं, जो संविधान का आधार बनकर उसके प्रयोग की संभावनाओं एवं सीमाओं को रेखांकित करती हैं।

हमारा संविधान जन-गण-मन का जयघोष करते हुए जनता को सर्वोच्च शक्तिसंपन्न होने का सामर्थ्य देता है और अपेक्षा करता है कि जनप्रतिनिधियों द्वारा इसका अनुपालन किया जाएगा। उद्देशिका देश की प्रगति के लिए कसौटी का भी काम करती हैं। प्रजा का सुख या लोक-संग्रह शासन के लिए लक्ष्य के रूप में प्राचीन काल से ही स्वीकृत रहा है। इसे ही ‘राम-राज्य’ कहा गया था, जिसका उल्लेख महात्मा गांधी ने भी किया था।

आज के युग में सामर्थ्य ही स्वतंत्रता तय करती है और स्वतंत्रता से सामर्थ्य उपजती है। स्वतंत्रता विकल्प चुनने की छूट देती है। उसकी मौलिक शर्त आत्मनिर्भरता होती है। स्वतंत्रता तभी संभव है जब समता हो। विषमता का होना प्रभुत्व और वर्चस्व को जन्म देता है।

गणतंत्र का उत्कर्ष इन्हीं स्थितियों को बनाने और बनाए रखने में निहित होता है और सबसे बड़ी बात यह है कि यह सब किसी दूसरे द्वारा नहीं, बल्कि जनता और उसके चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा होता है। ‘रिपब्लिक’ का स्पष्ट आशय राज्य की ऐसी व्यवस्था से है, जो शासक विशेष की व्यक्तिगत संपदा न हो। इस अर्थ में गणतंत्र जनता का स्वराज है।

बौद्ध काल में 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है। कालांतर में मुगल और अंग्रेज आक्रांताओं ने भारत भूमि पर कब्जा किया। अंग्रेजों ने अखंड भारत को दो टुकड़ों में बांट दिया। तब से आज तक भारतीय गणतंत्र अनेक आंतरिक और बाह्य चुनौतियों का सामना करते हुए निरंतर आगे बढ़ता रहा है। यदि आपातकाल की दुखद घटना को छोड़ दें तो अब तक जनता द्वारा विधिवत चुनी हुई सरकारों का ही शासन रहा है। जनता ने सरकारी नीतियों से संतुष्टि और असंतुष्टि के आधार पर समर्थन दिया और विभिन्न दलों की सरकारें आती-जाती रहीं।

इस समय अपार जनसमर्थन वाली भाजपा की सरकार केंद्र के साथ ही कई राज्यों में भी है। सरकारी योजनाओं का लाभ जन-जन तक पहुंचाते हुए एक विश्वसनीय नेता के रूप में प्रधानमंत्री मोदी अपने संवाद-कौशल से समर्थ भारत की नई छवि गढ़ने में सफल हुए हैं। विश्व के मंचों पर आज भारत की आवाज गौर से सुनी जाती है।

गणतंत्र दिवस के अवसर पर जब हम मंथन करते हैं तो यही लगता है कि स्वतंत्रता और ‘स्वराज’ यानी अपने ऊपर अपना राज स्थापित करने का अवसर तो मिला, किंतु उसे संभालना सरल न था। स्वराज के साथ जिम्मेदारी भी आती है। हमने स्वतंत्रता का प्रीतिकर स्वाद तो चखा, परंतु उसके साथ दायित्व स्वीकारने और कर्तव्य निभाने में कुछ ढीले पड़ते गए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की जान है, परंतु निरंकुशता और स्वच्छंदता समाज के लिए घातक है। देश को देने की जगह चट-पट क्या पा लें, इस चक्कर में भ्रष्टाचार, भेदभाव तथा अवसरवादिता आदि को छूट मिलने लगी। साल भर चुनाव की घंटी बजते देख आम आदमी थका-थका सा दिखने लगा है।

बेरोजगारी, महंगाई और किसानों की समस्याओं का समाधान चिरप्रतीक्षित है, मगर धन–बल, अपराध और परिवारवाद के साथ राजनीति चिंताजनक होती जा रही है। सार्वजनिक सभाओं में ही नहीं लोकसभा-राज्यसभा में भी सार्थक विचार-विनिमय की जगह अनर्गल टिप्पणी, तोड़फोड़ और अभद्र व्यवहार की घटनाएं बढ़ रही हैं। राजनीति में शुचिता लाए बिना देश की प्रगति को गति नहीं मिल सकती। जन-कल्याण के स्वप्न को पूरा करने के लिए उत्सव की मानसिकता और आडंबरों एवं कर्मकांडों से उबरना होगा। आजादी के रणबांकुरों के सपनों के भारत को यदि मूर्त रूप देना है तो देश-ऋण स्मरण करते हुए सभी को प्रयास करना होगा तभी ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की अवधारणा साकार होगी। इस गणतंत्र को उन्नति की दिशा में ले जाने के लिए तत्पर होना होगा। तमाम चुनौतियों और झंझावातों के बीच आइये एक बार पुनः गणतंत्र को सार्थक करने के लिए सभी देशवासी एकजुट हों, और संकल्प लेते हुए सही मायने में भारतीय लोकतंत्र के महापर्व गणतंत्र को समूचे विश्व के पटल पर सर्वोच्च स्थान दिलाने के लिए सामूहिक रूप से प्रयासरत हो जाएं।


“भास्कर हिंदी न्यूज़” की और से गणतंत्र दिवस की अनंत हार्दिक शुभकामनायें

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