MP, things said in anger are not responsible for abetment of suicide important order of high court three accused of damoh acquitted: digi desk/BHN/जबलपुर/ क्रोध में बोली गई बात आत्महत्या के उकसाने के लिए जिम्मेदार नहीं, केवल सुसाइड नोट के आधार पर आरोप तय नहीं किए जा सकते हैं। इस टिप्पणी के साथ हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति सुजय पाल की एकलपीठ ने तीन आरोपितों को दोषमुक्त कर दिया।
दमोह निवासी भूपेंद्र, राजेंद्र लोधी व भानु लोधी पर आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध पंजीबद्ध किया गया है। आरोप है कि मूरत लोधी नामक व्यक्ति से दुर्व्यवहार करते हुए हमला किया। जिसकी रिपोर्ट पथरिया थाने में दर्ज कराई गई थी।
बाद में प्रकरण में समझौते का दबाव डालते हुए राजेंद्र और भानु ने फिर उसके साथ अभद्रता करते हुए अपमानित किया। इससे आहत होकर मूरत ने तीनों के नाम सुसाइड नोट लिखकर आत्महत्या कर ली। ट्रायल कोर्ट से आरोप तय हो जाने से व्यथित होकर राजेंद्र, भानु और भूपेंद्र ने याचिका दायर कर मामले को निरस्त करने की मांग की।
हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना एक मानसिक प्रक्रिया है। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा कि गुस्से में बोले गए शब्द किसी व्यक्ति या समूह के विरुद्ध आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप का उपयुक्त मामला नहीं बनता है। मौखिक रूप से दुव्र्यवहार व धमकी के बाद अगर व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है तो महज सुसाइड नोट के आधार पर आरोप तय नहीं किए जा सकते हैं। हाईकोर्ट ने माना कि इसलिए इस आधार पर आरोपितों को दोषमुक्त कर दिया जाए।