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Shanivar Upay: शनिवार को करें हनुमान चालीसा, बजरंग बाण और सुंदर कांड का पाठ, मिटेंगे कष्‍ट

Shanivar upay recite hanuman chalisa bajrang baan and sundar kand on saturday pain and distress will end: digi desk/BHN/नई दिल्ली/ शनिवार का दिन वैसे तो शनि देव को समर्पित होता है लेकिन यह दिन हनुमान जी महाराज की आराधना का भी दिन है। शनि पीड़ा के अलावा अन्‍य ग्रहों की पीड़ा से गुज़र रहे लोग इस दिन हनुमान जी की सेवा, भक्ति करके जीवन के संकटों, कष्‍टों से निजात पा सकते हैं। यहां हम आपको हनुमान चालीसा, बजरंग बाण और सुंदर कांड के बारे में बता रहे हैं। आप भी इसका धर्म लाभ लीजिये।

श्री हनुमान चालीसा

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि

बरनऊं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि

बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन कुमार

बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर

जय कपीस तिहुं लोक उजागर

रामदूत अतुलित बल धामा

अंजनि पुत्र पवनसुत नामा

महाबीर बिक्रम बजरंगी

कुमति निवार सुमति के संगी

कंचन बरन बिराज सुबेसा

कानन कुंडल कुंचित केसा

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै

कांधे मूंज जनेऊ साजै

संकर सुवन केसरीनंदन

तेज प्रताप महा जग बन्दन

विद्यावान गुनी अति चातुर

राम काज करिबे को आतुर

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया

राम लखन सीता मन बसिया

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा

बिकट रूप धरि लंक जरावा

भीम रूप धरि असुर संहारे

रामचंद्र के काज संवारे

लाय सजीवन लखन जियाये

श्रीरघुबीर हरषि उर लाये

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं

अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा

नारद सारद सहित अहीसा

जम कुबेर दिगपाल जहां ते

कबि कोबिद कहि सके कहां ते

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा

राम मिलाय राज पद दीन्हा

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना

लंकेस्वर भए सब जग जाना

जुग सहस्र जोजन पर भानू

लील्यो ताहि मधुर फल जानू

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं

जलधि लांघि गये अचरज नाहीं

दुर्गम काज जगत के जेते

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते

राम दुआरे तुम रखवारे

होत न आज्ञा बिनु पैसारे

सब सुख लहै तुम्हारी सरना

तुम रक्षक काहू को डर ना

आपन तेज सम्हारो आपै

तीनों लोक हांक तें कांपै

भूत पिसाच निकट नहिं आवै

महाबीर जब नाम सुनावै

नासै रोग हरै सब पीरा

जपत निरंतर हनुमत बीरा

संकट तें हनुमान छुड़ावै

मन क्रम बचन ध्यान जो लावै

सब पर राम तपस्वी राजा

तिन के काज सकल तुम साजा

और मनोरथ जो कोई लावै

सोइ अमित जीवन फल पावै

चारों जुग परताप तुम्हारा

है परसिद्ध जगत उजियारा

साधु संत के तुम रखवारे

असुर निकंदन राम दुलारे

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता

अस बर दीन जानकी माता

राम रसायन तुम्हरे पासा

सदा रहो रघुपति के दासा

तुम्हरे भजन राम को पावै

जनम-जनम के दुख बिसरावै

अन्तकाल रघुबर पुर जाई

जहां जन्म हरि भक्त कहाई

और देवता चित्त न धरई

हनुमत सेइ सर्ब सुख करई

संकट कटै मिटै सब पीरा

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा

जै जै जै हनुमान गोसाईं

कृपा करहु गुरुदेव की नाईं

जो सत बार पाठ कर कोई

छूटहि बंदि महा सुख होई

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा

होय सिद्धि साखी गौरीसा

तुलसीदास सदा हरि चेरा

कीजै नाथ हृदय मंह डेरा

कीजै नाथ हृदय मंह डेरा

पवन तनय संकट हरन मंगल मूरति रूप

राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप

बजरंग बाण

दोहा

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।

तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।

चौपाई

जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।।

जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै।।

जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।

आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।

जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा।।

बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा।।

अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।।

लाह समान लंक जरि गई। जै जै धुनि सुर पुर में भई।।

अब विलंब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी।।

जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होई दुख करहु निपाता।।

जै गिरधर जै जै सुख सागर। सुर समूह समरथ भट नागर।।

ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले। वैरहिं मारू बज्र सम कीलै।।

गदा बज्र तै बैरिहीं मारौ। महाराज निज दास उबारों।।

सुनि हंकार हुंकार दै धावो। बज्र गदा हनि विलम्ब न लावो।।

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीसा।।

सत्य होहु हरि सत्य पाय कै। राम दुत धरू मारू धाई कै।।

जै हनुमन्त अनन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।

पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत है दास तुम्हारा।।

वन उपवन जल-थल गृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।

पाँय परौं कर जोरि मनावौं। अपने काज लागि गुण गावौं।।

जै अंजनी कुमार बलवन्ता। शंकर स्वयं वीर हनुमंता।।

बदन कराल दनुज कुल घालक। भूत पिशाच प्रेत उर शालक।।

भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल वीर मारी मर।।

इन्हहिं मारू, तोंहि शमथ रामकी। राखु नाथ मर्याद नाम की।।

जनक सुता पति दास कहाओ। ताकी शपथ विलम्ब न लाओ।।

जय जय जय ध्वनि होत अकाशा। सुमिरत होत सुसह दुःख नाशा।।

उठु-उठु चल तोहि राम दुहाई। पाँय परौं कर जोरि मनाई।।

ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमंता।।

ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल दल।।

अपने जन को कस न उबारौ। सुमिरत होत आनन्द हमारौ।।

ताते विनती करौं पुकारी। हरहु सकल दुःख विपति हमारी।।

ऐसौ बल प्रभाव प्रभु तोरा। कस न हरहु दुःख संकट मोरा।।

हे बजरंग, बाण सम धावौ। मेटि सकल दुःख दरस दिखावौ।।

हे कपिराज काज कब ऐहौ। अवसर चूकि अन्त पछतैहौ।।

जन की लाज जात ऐहि बारा। धावहु हे कपि पवन कुमारा।।

जयति जयति जै जै हनुमाना। जयति जयति गुण ज्ञान निधाना।।

जयति जयति जै जै कपिराई। जयति जयति जै जै सुखदाई।।

जयति जयति जै राम पियारे। जयति जयति जै सिया दुलारे।।

जयति जयति मुद मंगलदाता। जयति जयति त्रिभुवन विख्याता।।

ऐहि प्रकार गावत गुण शेषा। पावत पार नहीं लवलेषा।।

राम रूप सर्वत्र समाना। देखत रहत सदा हर्षाना।।

विधि शारदा सहित दिनराती। गावत कपि के गुन बहु भाँति।।

तुम सम नहीं जगत बलवाना। करि विचार देखउं विधि नाना।।

यह जिय जानि शरण तब आई। ताते विनय करौं चित लाई।।

सुनि कपि आरत वचन हमारे। मेटहु सकल दुःख भ्रम भारे।।

एहि प्रकार विनती कपि केरी। जो जन करै लहै सुख ढेरी।।

याके पढ़त वीर हनुमाना। धावत बाण तुल्य बनवाना।।

मेटत आए दुःख क्षण माहिं। दै दर्शन रघुपति ढिग जाहीं।।

पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।।

डीठ, मूठ, टोनादिक नासै। परकृत यंत्र मंत्र नहीं त्रासे।।

भैरवादि सुर करै मिताई। आयुस मानि करै सेवकाई।।

प्रण कर पाठ करें मन लाई। अल्प-मृत्यु ग्रह दोष नसाई।।

आवृत ग्यारह प्रतिदिन जापै। ताकी छाँह काल नहिं चापै।।

दै गूगुल की धूप हमेशा। करै पाठ तन मिटै कलेषा।।

यह बजरंग बाण जेहि मारे। ताहि कहौ फिर कौन उबारे।।

शत्रु समूह मिटै सब आपै। देखत ताहि सुरासुर काँपै।।

तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई। रहै सदा कपिराज सहाई।।

दोहा

प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै। सदा धरैं उर ध्यान।।

तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान।।

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