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जो ‘रावण’ हम सबके मन से बाहर नहीं निकला उसका वध कैसे..!

“विशेष सम्पादकीय”

            ऋषि पंडित
       ( प्रधान संपादक)

समस्त एक बार  देशवासी फिर से प्रत्येक वर्ष की भांति ‘असत्य पर सत्य’ की जीत का पर्व विजयादशमी मनाने के लिए तैयार हैं। तैयार हम हर साल होते हैं पर बस प्रतीकात्मक रावण के पुतले को फूंक कर पर्व की औपचारिकता निभा लेते हैं। हमारे अंदर जो ‘रावण’ के 10 स्वरूप डेरा डाले बैठे हैं उन्हें हम आज तलक बाहर नहीं निकाल पाये हैं और जो ‘रावण’ बाहर नहीं निकला उसका वध कैसे हो सकता है? शायद यही कारण है कि ‘रावण’ हम सब के भीतर अपने दसों सिरों के साथ जोंक की तरह चिपका हुआ है और हम बाहर ढोल-ढमाके पीट-पीट कर, आतिशबाजी कर उसका पुतला फूंकते हुए तालियां बजा कर खुश हो लेते हैं कि रावण दहन तो हो गया..! और ‘रावण’ अगले साल फिर आने की तैयारी कर भीतर ही दुबक जाता है और मन ही मन हंसता हुआ हमें और हमारी व्यवस्था को चिढ़ाता रहता है कि ‘मुझे’ बाहर कितना भी मारो जब तक हर व्यक्ति के भीतर बैठा ‘रावण’ नहीं मरेगा तब कथित तौर पर ‘रावण’ मारने का यह क्रम चलता रहेगा। विजयादशमी पर  देने के लिए ‘उपदेश’ तो बहुत हैं पर वो सिर्फ “पर उपदेश कुशल बहुतेरे” में ही सिमट कर रह जाते हैं।

वर्तमान में ऐसा लगता है जैसे हम खुद किसी सनसनीखेज फार्मूला फिल्म का हिस्सा बन गए हैं। हम सबको यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि सत्य सदैव विजयी होता है और सत्य के पथ का अनुगमन करने वाला विजेता बनता है। सत्य की शक्ति अलौकिक होती है। सत्य के आलोक में व्यक्ति का व्यक्तित्व अद्भुत हो जाता है। सत्य का आचरण करने वाला सदैव आत्मविश्वास से भरा रहता है। उसे भय स्पर्श भी नहीं कर पाता। उसका मस्तक सदैव ऊंचा रहता है। सत्य के मार्ग में विपत्तियां अवश्य आती हैं। यह मार्ग कांटों से भरा हुआ होता है, परंतु इसमें चलने वाले पथिक को जो आनंद प्राप्त होता है, वह अनिर्वचनीय है।

भगवान श्रीराम ने सदैव सत्य के मार्ग का अनुसरण किया। सत्य ही धर्म है। इसीलिए उनका मार्ग धर्म का मार्ग कहलाया। उन्होंने सत्य की शक्ति से असत्य को धराशायी किया। रावण ने असत्य और छल का मार्ग अपनाकर स्वयं के नाश को आमंत्रित किया। स्पष्ट है कि असत्य का मार्ग नाश का मार्ग है।  रावण के एक लाख पुत्र और सवा लाख नाती होने के बावजूद वह श्रीराम से युद्ध हार गया। उसके कुल का समूल नाश हो गया। वह समय रहते सत्य की शक्ति को जो जान न सका। सत्य को असहाय समझना उसकी मूर्खता थी।

मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु राम सत्य के अनुगामी रहे। उन्होंने सत्य की जीत के लिए अपनी सभी क्षमताओं का प्रयोग किया। विजयदशमी का पर्व प्रतिवर्ष हमें सत्य की जीत का आभास दिलाता है। हमें प्रेरित करता है कि हम अपने जीवन में सत्य के मार्ग को आत्मसात करें।

आप सभी को “भास्कर हिंदी न्यूज़” की तरफ से विजयादशमी पर्व की आत्मिक शुभकामनायें। प्रयास करें कि ‘मन’ के भीतर बैठे रावण के ‘दस’ नहीं तो कम से कम एक ‘सिर’ का इस विजय पर्व पर दहन हो जाये।

 

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