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Dussehra 2022: केवल दशहरा पर खुलता है 700 साल पुराना कंकाली मठ, जानिए दिलचस्‍प कहानी

CG, 700 years old kankali math only opens on dussehra know the interesting story behind the name: digi desk/BHN/रायपुर/ ब्राह्मणपारा में कंकाली तालाब के उपर 700 साल पुराना कंकाली मठ है। घनघोर जंगल में श्मशान के बीच नागा साधुओं ने मठ का निर्माण किया था। यहां वे काली की पूजा करते थे। कंकालों के बीच काली की पूजा होने से इस मठ का नाम कंकाली मठ पड़ा। कालांतर में मठ की प्रतिमा को नए मंदिर में स्थानांतरित किया गया। स्थानांतरित होने के बाद पुराने मठ में नागा साधुओं के शस्त्र रखे गए। सालों से यह मठ अब साल में एक बार दशहरा के दिन ही खोला जाता है। शस्त्रों की पूजा करके श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ रखा जाता है। दूसरे दिन पूजा करके फिर मठ को बंद कर दिया जाता है।

नागा साधु करते थे तांत्रिक पूजा

कंकाली मठ के महंत हरभूषण गिरी बताते हैं कि वर्तमान में कंकाली मंदिर में जो प्रतिमा है, वह पहले पुराने मठ में विराजित थी। नागा साधु श्मशान के बीच तांत्रिक पूजा करते थे। दक्षिण भारत से आकर नागा साधुओं ने डेरा डाला था। नागा साधुओं ने ही मठ की स्थापना की थी। श्मशान में दाह संस्कार के पश्चात कंकालों को तालाब में विसर्जित किया जाता था। कालांतर में इसका नाम कंकाली तालाब और कंकाली मठ पड़ गया।

मठ में साधुओं की समाधि

मठ में निवास करने वाले किसी नागा साधु की मृत्यु होने पर मठ में समाधि बना दी जाती थी। पुराने मठ में आज भी समाधियां बनीं हुई है।

कई महंतों ने दी सेवा

13वीं शताब्दी में मठ की स्थापना की गई थी। 17वीं शताब्दी तक मठ में सैकड़ों नागा साधु रहते थे। इसके बाद मठ के पहले महंत कृपालु गिरी बने। बाद के महंतों में भभूता गिरी, शंकर गिरी महंत बने। तीनों निहंग संन्यासी थे। महंत शंकर गिरी ने निहंग प्रथा को समाप्त कर शिष्य सोमार गिरी का विवाह करवाया। उनकी संतान नहीं हुई तो शिष्य शंभू गिरी को महंत बनाया। शंभू गिरी के प्रपौत्र रामेश्वर गिरी के वंशज महंत हरभूषण गिरी वर्तमान में कंकाली मठ के महंत एवं सर्वराकार हैं।

कंकाली मठ में रखे शस्त्र

कंकाली मठ में एक हजार साल से अधिक पुराने शस्त्रों में तलवार, फरसा, भाला, ढाल, चाकू, तीर-कमान जैसे शस्त्र रखे हुए हैं। इनकी साफ-सफाई दशहरे के दिन की जाती है।

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