Pitru paksha 2022, do not be afraid to make purchases during shradh paksha: digi desk/BHN/ हिंदू धर्म में जिस प्रकार से देवों की पूजा आराधना के लिए अलग-अलग माह समर्पित हैं, उसी तरह आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में देव तुल्य पितरों की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि पितृपक्ष में अपने वंशजों के आह्वान पर देव-पितर धरा पर आते हैं। श्राद्ध-तर्पण से संतुष्ट होने के बाद सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देकर अपने धाम को चले जाते हैं। ज्योतिर्विद इस काल को पितरों की आराधना का पुण्य काल बताते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस काल में भू-भवन, धन-संपत्ति आदि की खरीद की जाए तो पितरों की आत्मा प्रसन्न होती है।
खरीदी बिक्री की मनाही का शास्त्रों में जिक्र नहीं
पितरों के श्रद्धा के समय में शुभ-अशुभ का हवाला देते हुए खरीद-बिक्री की पांबंदी की बात हम सुनते रहते हैं लेकिन शास्त्रों में कहीं भी इसका जिक्र नहीं है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ज्योतिष विभागाध्यक्ष प्रो. गिरिजा शंकर शास्त्री बताते हैं कि पितरों को देव कोटि तुल्य माना जाता है। शादी-विवाह हो या अन्य मंगल कार्य, पितरों को सबसे पहले आमंत्रित किया जाता है।
तुलसीदास ने पितरों को शिव तुल्य बताया
शास्त्री का कहना है कि गोस्वामी तुलसीदास ने भगवान शिव को पितर कहा है। पितृ पक्ष पितरों का महोत्सव है। उन्हें स्मरण करने और श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध व तर्पण करने का काल है। पौराणिक ग्रंथों में भी बताया गया है कि तर्पण ऋषियों का नैत्यिक व शुभ कार्य था। अतः पितृ पक्ष में खरीदारी को लेकर कोई निषेध शास्त्र-पुराणों में नहीं बताया गया है।
अन्य विद्वानों की खरीदारी पर राय
इसके अलावा काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष व श्रीकाशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री प्रो. विनय पांडेय का भी कहना है कि पितृपक्ष श्रद्धा का पर्व है। हम पितरों का आह्वान करते हैं। सूर्य की संक्रांतियों अनुसार दिनों का बंटवारा किया जा रहा था, तब बचे हुए 16 दिनों को विशेष रूप से पितरों को समर्पित किया गया। इसमें भू-भवन समेत कोई भी वस्तु खरीदना शुभ होता है। हिंदू धर्म शास्त्रों में खरीदारी को निषेध नहीं बताया गया है।