Sanitizer Rate: इंदौर/ दवा से लेकर कॉस्मेटिक तक में महंगाई को लेकर शोर मच रहा है। इसके उलट कोरोनाकाल में आम जरुरत का उत्पाद बन कर उभरे हैंड सैनिटाइजर की कीमतें औंधे मुंह गिर गई है। इंदौर के थोक दवा बाजार में हैंड सैनिटाइजर की कीमतें सीधे 50 प्रतिशत तक कम हो गई हैं। हैरानी की बात ये कि कीमतों में भारी गिरावट के बावजूद सैनिटाइजर की बिक्री बढ़ना तो दूर पहले के मुकाबले आधी से भी कम रह गई है। बिक्री घटने से साफ नजर आ रहा है कि कोरोना से बचाव के उपायों को लेकर लोगों का रवैया लापरवाह हो गया है।
इंदौर के थोक दवा बाजार में सैनेटाइनजर प्रति पांच लीटर ढाई सौ से साढ़े तीन सौ रुपये की कीमत में बिकने लगा है। सितंबर के पहले सप्ताह तक सैनिटाइजर के थोक बाजार में दाम 600 से 750 रुपये प्रति पांच लीटर थे। साफ नजर आ रहा है कि सैनिटाइजर की कीमतें 50 फीसद तक गिर चुकी है। दवा बाजार में यूनिक केमिस्ट के संचालक रोहित तनेजा के अनुसार हैरानी की बात ये है कि कीमत घटने के बावजूद मांग न के बराबर है। हाल ये है कि करवा चौथ से दीपावली के अगले दिन तक सैनिटाइजर की बिक्री बिल्कुल भी नहीं हुई। साफ लग रहा है कि त्यौहारों के दौर में लोगों ने सैनिटाइजर के उपयोग को बिल्कुल अनदेखा कर दिया।
दवा फैक्ट्री संचालक और स्मॉल स्कैल ड्रग मैन्यूफेक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हिमांशु शाह के अनुसार सितंबर के अंत से सैनिटाइजर की मांग में तेजी से गिरावट दर्ज हुई। फिलहाल बिक्री आधी से भी कम हो चुकी है। दाम गिरने का कारण मांग कम होना भी है। निर्माताओं के अलावा थोक विक्रेताओं के पास काफी स्टॉक था लिहाजा वे इसे निकालना चाहते हैं। बीते चार-पांच दिनों से मांग में थोड़ी वृद्धि नजर आ रही है लेकिन बीते दौर के मुकाबले अब भी मांग करीब 30-40 फीसद ही है।
आम खरीदार को लाभ नहीं
खास बात ये कि थोक बाजार में हैंड सैनिटाइजर के दाम भले आधे हो गए हैं लेकिन आम उपभोक्ता तक इसका लाभ नहीं पहुंच पा रहा। दवा निर्माता शाह के मुताबिक अब भी सैनिटाइजर की बोतलों पर एमआरपी 500 रुपये प्रति लीटर ही प्रिंट हो रही है। ऐसे में ब्रांडेड और रिटेल काउंटर जो एमआरपी पर बिक्री कर रहे हैं वे उपभोक्ता को कम हुई कीमत का लाभ नहीं दे रहे। बेसिक ड्रग डीलर्स एसोसिएशन के सचिव जयप्रकाश मूलचंदानी के अनुसार कच्चे माल के रूप में इथेनॉल की पर्याप्त उपलब्धता है। ऐसे में आगे भी दाम बढ़ने के आसार नहीं है। पहले आइसोप्रोपाइल अल्कोहल से सैनिटाइजर बनता था जो कि महंगा होता है और महाराष्ट्र से मप्र में आपूर्ति होती थी।