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Raksha Bandhan: दो दिन पड़ रही पूर्णिमा तिथि, जानिए किस दिन मनाया जाएगा रक्षाबंधन

Tyohar raksha bandhan 2022, purnima date is falling on both the days know on which day the festival of rakshabandhan will be celebrated: digi desk/BHN/नई दिल्ली/अगस्त में सावन के आखिरी दिन यानी कि सावन की पूर्णिमा पर रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार भाई-बहन के लिए अहम माना जाता है। इस साल यह त्योहार 11 अगस्त को मनाया जाने वाला है। हिंदू धर्म में रक्षाबंधन के त्योहार को भाई-बहन के अटूट प्रेम और रिश्ते का प्रतीक माना जाता है। इस दिन बहनें अपने भाईयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और भगवान से भाई की लंबी उम्र और सौभाग्य की प्रार्थना करती हैं। पर इस बार रक्षाबंधन 11 अगस्त को मनाया जाएगा या 12 अगस्त को इसको लेकर कई लोगों में उलझन है। आज हम आपकी इसी उलझन को दूर करने वाले हैं। पंचांग के मुताबिक सावन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को 11 अगस्त को सुबह 10:38 से शुरू हो रही है जो कि अगले दिन यानी कि 12 अगस्त को सुबह 07:05 पर खत्म होगी।

इस दिन मनाया जाएगा रक्षाबंधन

पूर्णिमा 12 अगस्त को सुबह सात बजे ही खत्म हो जाएगी। ऐसे में उदया तिथि होने के बाद भी 12 अगस्त को रक्षाबंधन न मनाकर 11 अगस्त को ही रक्षाबंधन मनाया जाएगा। 11 अगस्त को पूरे दिन राखी बांधने का अच्छा समय रहने वाला है। 12 अगस्त को पूर्णिमा केवल स्नान और दान की मनेगी। इस दिन केवल स्नान और दान किया जाएगा। व्रत की पूर्णिमा एक दिन पहले यानी कि 10 अगस्त को की जाएगी। राखी के त्योहार पर पंचांग में भद्रा का समय जरूर देखा जाता है। भद्रा में राखी बांधना भाई-बहन के लिए अच्छा नहीं होता है। राखी बांधने का सबसे अच्छा समय सुबह 9:28 से रात 9:14 तक रहेगा।

भद्रा काल में क्यों नहीं बांधनी चाहिए राखी

हिंदू पंचांग में भद्रा काल को अशुभ समय माना जाता है। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। इस दौरान राखी बांधने जैसा शुभ कार्य भी नहीं किया जाता है। भद्रकाल में मुंडन, विवाह, गृह प्रवेश, नए व्यापार की शुरुआत, तीर्थ स्थलों पर जाना जैसे शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। दरअसल भद्रा माता सूर्य देव और छाया की पुत्री और शनिदेव की बहन है। इनका रूप काफी विकराल माना जाता है। इनका रंग काला तथा बाल और दांत काफी लंबे होते हैं। अपने इसी भयावह रूप के कारण उन्हें हिंदू पंचांग में विष्टि करण के रूप में जगह दी गई है। जब भद्रा माता का जन्म हुआ था तो वे पूरे संसार को निगलने वाली थी। जिसके चलते उन्होंने मंगल कार्यों में विघ्न डालना शुरू कर दिया था। बाद में ब्रह्मा जी के समझाने पर उन्हें करणों में से सातवें स्थान विष्टि करण के रूप में स्थान प्राप्त हुआ था।

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