पन्ना, भास्कर हिंदी न्यूज़/ पन्ना नगर में अनूठी धार्मिक परंपराएं प्रचलित हैं, यहां पर धूमधाम और राजसी ठाठबाट के साथ मनाये जाने वाले रथयात्रा महोत्सव की शुरुआत में मंगलवार को भगवान जगन्नाथ लू लगने से बीमार हो गए और पूरे 15 दिनों के लिए मंदिर के कपाट बंद हो गए।
रथयात्रा महोत्सव की परंपरा डेढ़ सौ वर्ष पुरानी
जगन्नाथपुरी की तर्ज पर यहां निकलने वाली रथयात्रा महोत्सव की परम्परा डेढ़ सौ वर्ष से भी अधिक पुरानी है। परम्परानुसार पवित्र तीर्थों के सुगंधित जल से स्नान करने के कारण जगत के नाथ भगवान जगन्नाथ स्वामी लू लगने से आज बीमार पड़ गये हैं। भगवान के ज्वर पीड़ित होने का यह धार्मिक आयोजन स्नान यात्रा के रूप में पन्ना के जगन्नाथ स्वामी मन्दिर में आज बड़े ही धूमधाम के साथ सैकड़ों श्रद्घालुओं और राज परिवार के सदस्यों के बीच बैंड बाजे के साथ संपन्न हुआ। आज के इस आयोजन में पन्ना राजघराने के सदस्य और मन्दिर समिति के सदस्य व पुजारी सहित गणमान्य नागरिक, भक्तजन शामिल रहे। भगवान के बीमार पडने के साथ ही रथयात्रा महोत्सव का शुभारंभ हो गया है।
भगवान की स्नान यात्रा के कार्यक्रम की शुरूआत हुई
उल्लेखनीय है कि डेढ़ शताब्दी से भी अधिक पुरानी हो चुकी पन्ना के रथयात्रा महोत्सव की स्नान यात्रा कोरोना संकट के बाद इस वर्ष उत्साह के साथ मनाई जा रही है। राजशाही जमाने से चली आ रही परम्परा के अनुसार आज सुबह 9 बजे बड़ा दीवाला स्थित जगदीश स्वामी मंदिर में भगवान की स्नान यात्रा के कार्यक्रम की शुरूआत हुई। पन्ना राज परिवार के सदस्य सहित मंदिर के पुजारियों तथा नगर के गणमान्य नागरिक द्वारा गर्भगृह में विराजमान भगवान जगदीश स्वामी उनके बड़े भाई बलभद्र, बहन देवी सुभद्रा की प्रतिमाओं को आसन में बैठाकर मंदिर प्रांगण स्थित लघु मंदिर में बारी-बारी से लाकर विराजमान कराया गया। भगवान की स्नान यात्रा में पहुंचने पर बैण्डबाजों व आतिशबाजी से उनका स्वागत किया गया।
हजार छिद्र वाले मिट्टी के घड़े से भगवान को स्नान कराया गया
भगवान की स्नान यात्रा के दौरान मंदिर प्रांगण में गगनभेदी जयकारे सुनाई देने लगे। मंदिर के पुजारियों तथा ब्राम्हणों द्वारा वेद मंत्रों के साथ भगवान की पूजा अर्चना की गई तथा हजार छिद्र वाले मिट्टी के घड़े से भगवान को स्नान कराया गया। स्नान के साथ ही मान्यता के अनुसार भगवान लू लग जाने की वजह से बीमार पड़ गये। जिन्हे सफेद पोशाक पहनाई गई और भगवान की भव्य आरती की गई। भगवान के स्नान यात्रा के बाद चली आ रही परम्परा के अनुसार मिट्टी के घट श्रद्घालुओं को लुटाये जाने की परम्परा का निर्वहन भी बड़ी धूमधाम से किया गया। मंदिर के बाहर खड़े श्रद्घालुओं को घट प्रदान किये गये जिन्हें वे खुशी के साथ सुरक्षित तरीके से अपने घर ले गये। वर्षभर खुशहाली की कामना के साथ अपने घर के पूजा स्थल में प्राप्त घट को रखकर उन्हें पूजा जायेगा। कार्यक्रम के बाद बीमार पड़े भगवान को फिर से बारी-बारी करके आशन में बैठाते हुये मंदिर के गर्भगृह के अंदर ले जाकर विराजमान कराया गया और मंदिर के पट 15 दिन तक के लिये बंद हो गये।