Curbing investigative agencies is like promoting corruption: digi desk/BHN/भोपाल/अधिकारियों-कर्मचारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार से जुड़े मामले में कार्रवाई के लिए जांच एजेंसियों पर पूर्व अनुमति लेनी होगी। इसके लिए सरकार ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 17-ए में अखिल भारतीय सेवा या वर्ग एक के किसी भी अधिकारी के खिलाफ अनुमति लेकर ही कार्रवाई करना अनिवार्य कर दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ और नेता प्रतिपक्ष डा. गोविन्द सिंह ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि जांच एजेंसियों पर अंकुश लगाना भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने जैसा है।
केंद्रीय कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय (कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग) के निर्देशों के तहत सामान्य प्रशासन व्यवस्था ने नई व्यवस्था लागू की है। पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने कहा कि इस व्यवस्था से भ्रष्टाचार निरोधक संस्थाएं पंगु बन जाएंगी। भ्रष्टाचार करने वालों के हौसले बुलंद होंगे। जबकि, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैं कि भ्रष्टाचार करने वाला कोई भी हो, किसी भी सूरत में छोड़ा नहीं जाएगा लेकिन यह प्रविधान उस मंशा के विपरीत है। डा.सिंह ने कहा कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए ही लोकायुक्त संगठन और राज्य आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) जैसी संस्थाएं अस्तित्व में लाई गई थीं। बिना अनुमति के यदि ये किसी की तरह की पूछताछ या एफआइआर नहीं कर सकेंगी तो इनकी उपयोगिता ही नहीं बचेगी। उन्होंने सरकार से पिछले 15 साल में जितने अधिकारियों-कर्मचारियों के विरुद्ध कार्रवाई हुई, अभियोजन स्वीकृति के लंबित प्रकरण की जानकारी सार्वजनिक करने की मांग की है।