Rangbhari Ekadashi 2022: digi desk/BHN/नई दिल्ली/ रंगभरी एकादशी, फाल्गुन मास (Phalgun Mas) के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इसे आमलकी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। ये एकादशी इस साल 14 मार्च दिन सोमवार को मनाई जाएगी। रंगभरी एकादशी पर भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा की जाती है। सोमवार का दिन होने की वजह से दिन शिव पूजा के लिए वैसे भी खास है। इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की विशेष पूजा कर उन पर आंवला चढ़ाया जाता है। मान्यता है कि रंगभरी एकादशी पर यदि शिव जी और पार्वती जी की विधिपूर्वक पूजा की जाए तो समस्त मनोकामना पूर्ण होती है। एकादशी का दिन होने की वजह से इस दिन भगवान विष्णु की भी पूजा होती है। साथ ही आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है।
बन रहा है दुर्लभ संयोग
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक ग्रहों-नक्षत्रों के कुछ खास योग के दौरान पूजा की जाए, तो फल प्राप्ति की संभावना बहुत बढ़ जाती है। इस बार रंगभारी एकादशी पर ग्रहों-नक्षत्रों का ऐसा ही अद्भुत संयोग बन रहा है। सबसे पहले बात सर्वार्थ सिद्धि योग की। जैसा कि नाम से जाहिर है, इस योग में पूजा-पाठ से सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इस बार सोमवार 14 मार्च को सुबह 6 बजकर 32 मिनट से रात 10 बजकर 8 मिनट कर सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। यानी इस दौरान दिन भर में कभी भी विधि-विधान से पूजन करने पर आपकी मनोकामना जरुर पूर्ण होगी।
से 10 मार्च से 17 मार्च तक होलाष्टक चल रहा है। इस दौरान कोई शुभ कार्य नहीं करते। लेकिन रविवार 13 मार्च की शाम 7 बजे से पुष्य नक्षत्र योग शुरु होगा, जो सोमवार शाम 7 बजे तक रहेगा। इस दौरान किसी भी तरह की खरीदारी बहुत शुभ होती है, और इस पर होलाष्टक का कोई असर नहीं होगा। मान्यता है कि पुष्य नक्षत्र में की गई खरीदारी लंबे समय तक लाभ पहुंचाती है और इससे जातक की सुख और समृद्धि बढ़ती है। यानी सोमवार को जो भी व्रत रखेगा और विधि- विधान से शिव-पार्वती और भगवान विष्णु की पूजा करेगा, उसके समस्त कार्य सफल होंगे।
कैसे करें पूजन
- इस दिन ब्रह्म मुहूर्त यानि सूर्योदय से पहले ही उठकर स्नान करें और रंगभरी एकादशी व्रत का संकल्प करें।
- चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं और उस पर माता पार्वती और भगवान शिव की मूर्ति या तस्वीर को विराजमान करें।
- मूर्ति पर अक्षत, फूलों की माला, फूल, लाल चंदन और माता पार्वती के लिए लाल सिंदूर, श्रृंगार आदि चढ़ाएं।
- दिन भर व्रत करें और अगले दिन यानि स्नान करके विसर्जन करें और पारण करके अपने व्रत को पूरा करें।