Supreme court says state force should never be used to browbeat political opinion and journalists: digi desk/BHN/नई दिल्ली/ सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि पत्रकारों या राजनीतिक विचारों को दबाने के लिए सरकारी तंत्र का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। यही नहीं ट्विटर युग में पत्रकारों को भी अधिक जिम्मेदारी और सजगता से काम करना चाहिए। साथ ही साथ विचारों के स्तर पर राजनीतिक वर्ग को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। इन टिप्पणियों के साथ ही जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने पश्चिम बंगाल में प्रकाशित लेखों के संबंध में एक समाचार वेब पोर्टल के संपादकों के खिलाफ मामले को रद कर दिया।
प्रदूषण की स्थिति में सुधार देख सुप्रीम कोर्ट नरम
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली एनसीआर के प्रदूषण स्तर में थोड़े सुधार को देखते हुए शुक्रवार को वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग से कहा कि वह पाबंदियों से राहत मांगने वाली विभिन्न उद्योगों, निर्माण और स्कूल आदि की अर्जियों पर राज्यों के साथ विचार-विमर्श कर एक सप्ताह में निर्णय ले। ये आदेश प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने दिल्ली एनसीआर में वायु प्रदूषण के मामले में सुनवाई के दौरान दिए।
शुक्रवार को विभिन्न उद्योगों जैसे पेपर मिल, शुगर मिल, मदर डेयरी, राइस मिल, दिल्ली-एनसीआर के बिल्डरों आदि की ओर से अर्जी दाखिल कर कहा गया कि प्रदूषण की स्थिति में सुधार को देखते हुए उन पर लगी पाबंदियों में राहत दी जाए। पीठ ने अर्जीकर्ता वकीलों से कहा कि कोर्ट हर मामले में अलग-अलग विचार नहीं कर सकता। उनकी अर्जियों पर आयोग विचार करके निर्णय लेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह आयोग को निर्देश देते हैं कि वह विभिन्न उद्योगों की छूट मांगने वाली अर्जियों पर कोर्ट के आदेश और अपने सर्कुलर के मुताबिक विचार करेगा और राज्यों से भी परामर्श करेगा। पीठ ने कहा कि वह उम्मीद करते हैं कि आयोग इस बारे में एक सप्ताह में निर्णय ले लेगा। यह कहते हुए कोर्ट ने पाबंदियों से राहत मांगने वाली अर्जियां निपटा दीं।