Hybrid terrorists become a challenge for security forces in J&K:digi desk/BHN/नई दिल्ली/ जम्मू-कश्मीर में पिछले तीन दशक से आंतकरोधी अभियान में लगे सुरक्षा बलों के सामने अब कानून-व्यवस्था को दुरुस्त करने की चुनौती खड़ी हो गई है। घाटी में ‘हाइब्रिड आतंकियों’ की पौध चिंता का नया कारण बन रही है। पिछले कुछ दिनों में निर्दोष नागरिकों की चुन-चुनकर की गई हत्या ने घाटी में सुरक्षा की बागडोर को संभाल रही एजेंसियों को अपनी रणनीति के बारे में नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है। सुरक्षा एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आतंकियों की नई रणनीति को देखते हुए आतंकरोधी आपरेशन में कानून-व्यवस्था के जुड़े अनुभवी अधिकारियों को शामिल करने का काम शुरू कर दिया गया है।
दस-दस हजार रुपये देकर युवाओं से करवाई जा रहीं हत्याएं
गृहमंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, निर्दोष नागरिकों की चुन-चुनकर हत्या के पीछे भले ही आतंकियों का हाथ हो, लेकिन इसमें ऐसे युवाओं को इस्तेमाल किया गया है, जिनका आतंकी घटनाओं से सीधा कोई संबंध नहीं रहा है। न ही इन युवाओं ने आतंकी संगठनों का दामन थामा है। कई अधिकारियों ने दावा किया कि इन हत्याओं के लिए युवाओं को आतंकियों की ओर से दस-दस हजार रुपये और पिस्तौल दी गई थी। घटना को अंजाम देने के बाद उनसे पिस्तौल वापस ले ली जाती है और वे वापस सामान्य जीवन जीने लगते हैं। सुरक्षा एजेंसियों के कुछ लोग उन्हें ‘हाइब्रिड आतंकी’ की संज्ञा दे रहे हैं।
बदलेगी आतंकरोधी अभियान की रणनीति
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ऐसे आतंकियों से निपटना आतंकरोधी दस्ते के लिए मुश्किल काम है। पिछले 30 सालों से सुरक्षा एजेंसियां आतंकियों की मौजूदगी की खुफिया सूचना के आधार पर आपरेशन को अंजाम देती रही हैं, जिसमें अधिकांश मामले में मुठभेड़ में आतंकियों को मार गिराया जाता रहा है। कश्मीर में तैनात सुरक्षा बलों को आतंकियों के मुठभेड़ के लिए विशेष तौर पर तैयार किया गया है।
अनुभवी अधिकारियों की ज्यादा जरूरत
पिछले कुछ दिनों में गृहमंत्रालय में आतंकवाद के इस नए स्वरूप से निपटने के लिए काफी मंथन हुआ। इससे यह साफ हो गया कि इन हाइब्रिड आतंकियों से निपटना सिर्फ मुठभेड़ के लिए प्रशिक्षित सुरक्षा बलों से संभव नहीं है और इसमें कानून-व्यवस्था से जुड़े अनुभवी अधिकारियों की ज्यादा जरूरत है, जो सामान्य पुलिसिंग को मजबूत करते हुए ऐसी घटना को अंजाम देने वाले युवाओं की तत्काल पहचान कर उन्हें गिरफ्तार किया जा सके।
नहीं सफल होगी पाकिस्तान की साजिश
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कुछ घटनाओं को अंजाम देने में आतंकी भले ही कामयाब हो जाएं, लेकिन हकीकत यह है कि आम जनता के बीच उनकी स्वीकार्यता तेजी से घटी है और आतंकी बनने वाले युवाओं की संख्या लगातार घट रही है। यही नहीं, नए बनने वाले आतंकियों की आयु सात दिन से छह महीने की रह गई है। उन्होंने कहा कि पैसे देकर हत्या कराने और दहशत फैलाने की पाकिस्तान की साजिश को सफल नहीं होने दिया जाएगा।