Supreme court said life imprisonment means rigorous imprisonment for life: digi desk/BHN/नई दिल्ली/सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को स्पष्ट किया कि उम्रकैद का मतलब ‘आजीवन कठोर कारावास’ की सजा ही है। शीर्ष अदालत ने कहा कि महात्मा गांधी की हत्या के मामले में नाथूराम गोडसे के छोटे भाई के केस समेत विभिन्न फैसलों में इसे पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है। इसके साथ ही अदालत ने इस मामले की फिर से समीक्षा करने से इन्कार कर दिया।
आजीवन कारावास की पहले से तय कानून की समीक्षा करने से किया इन्कार
जस्टिस एलएन राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह अहम आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों याचिकाएं खारिज कर दी। ये दोनों याचिकाएं हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा पाए दोषियों की तरफ से विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की गई थी।
महात्मा गांधी की हत्या के मामले समेत अन्य कई केस में सुनाए गए फैसले का दिया हवाला
दोनों ने यह जानना चाहा था कि क्या उन्हें दी गई आजीवन कारावास की सजा को आजीवन कठोर कारावास के रूप में माना जाना चाहिए। पीठ ने सुनवाई से इन्कार करते हुए सुप्रीम कोर्ट की तरफ से दिए गए फैसले का उल्लेख किया। पीठ ने कहा कि 1961 में नाथूराम गोडसे के छोटे भाई गोपाल विनायक गोडसे बनाम महाराष्ट्र के केस में भी शीर्ष अदालत ने कहा था कि आजीवन कारावास की सजा को आजीवन कठोर कारावास के बराबर माना जाना चाहिए।
गोपाल विनायक गोडसे को महात्मा गांधी की हत्या के मामले में 1949 में दोषी ठहराया गया था और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। याचिका दायर करने वालों में से एक हिमाचल प्रदेश का राकेश कुमार शामिल था। राकेश को उसकी पत्नी की हत्या के मामले में हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने आइपीसी की धारा 302 के तहत उम्र कैद की सजा सुनाई है। 2018 में शीर्ष अदालत उसकी याचिका में शामिल सिर्फ इस सवाल पर सुनवाई करने के लिए राजी हुई थी कि उसे आजीवन कारावास की सजा देते समय कठोर कारावास का विशेष-तौर पर उल्लेख करने का औचित्य क्या है। दूसरी याचिका गुवाहाटी के सजायाफ्ता मुहम्मद आजीज अली ने दायर की थी।