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Ganesh Chaturthi: गणेश पूजन के मंत्र, विधि-विधान से पूजा के बाद जरूर करें मंगलकारी आरती

Ganesh Chaturthi 2021 Mantra: digi desk/BHN/ प्रथम पूज्य भगवान गणेशजी की आराधना का सबसे बड़ा पर्व मनाया जा रहा है। हर घर में भगवान गणेश के स्वागत किया जा रहा है। शुभ मूहुर्त में बप्पा की प्रतिमा घर-घर में स्थापित की जा रही हैं और विधि-विधान से पूजा-आरती की जा रही है। यह क्रम अगले 10 दिन चलेगा और 19 सितंबर को अनंच चतुर्दशी के दिन गणपति की विदाई होगी। भगवान गणेश की पूजा में पूजन सामग्री और प्रसाद के साथ ही मंत्रों का भी विशेष महत्व है। यहां हम भगवान गणेश से जुड़े कुछ सामान मंत्र दे रहे हैं, जिनका उच्चारण पूजा के दौरान किया जा सकता है।

  1. ॐ गं गणपतये नमः
  2. श्री वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटी समप्रभा निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व-कार्येशु सर्वदा॥
  3. ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।
  4. ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा
  5. ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा
  6. ऊँ एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।
  7. गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः।

द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः॥

विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः।

द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्‌॥

विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत्‌ क्वचित्‌।

8.‘त्रयीमयायाखिलबुद्धिदात्रे बुद्धिप्रदीपाय सुराधिपाय।

नित्याय सत्याय च नित्यबुद्धि नित्यं निरीहाय नमोस्तु नित्यम्।।

9.”णपूज्यो वक्रतुण्ड एकदंष्ट्री त्रियम्बक:।

नीलग्रीवो लम्बोदरो विकटो विघ्रराजक:।।

धूम्रवर्णों भालचन्द्रो दशमस्तु विनायक:।

गणपर्तिहस्तिमुखो द्वादशारे यजेद्गणम्।।’

10. नैवेद्यं गृह्यतां देव भक्तिं मे ह्यचलां कुरू

ईप्सितं मे वरं देहि परत्र च परां गरतिम्,

शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च,

आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद।

आरती श्री गणेश जी की- Ganesh Ji Ki Aarti

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा .

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥

एक दंत दयावंत, चार भुजाधारी .

माथे पे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ॥

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया .

बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥

हार चढ़ै, फूल चढ़ै और चढ़ै मेवा .

लड्डुअन को भोग लगे, संत करे सेवा ॥

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥

दीनन की लाज राखो, शंभु सुतवारी .

कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी ॥

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥

गणेशजी की आरती

सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची

नूरवी पुरवी प्रेमा कृपा जयची

सर्वांगी सुंदरा उति शेंदुराची

कंठि झलके माला मुक्ताफलनि

जय देव जय देवा जय मंगलमूर्ति

दर्शनमत्रे मनकामना पूर्ति

रत्नाचिता फरा तुजा गौरीकुमारा

चंदनची उति कुमकुमकेसरा

हिर जादिता मुकुता शोभतो बारा

रनहुँति नृप चरनि गहगारी

जय देव जय देवा जय मंगलमूर्ति

दर्शनमत्रे मनकामना पूर्ति

लम्बोदर पीताम्बरा फणीवर बंधना

सरला सोंडा वक्रतुण्ड त्रिनयन

दासा रामच वात पै साधना

संकटी पावे निर्वाणी रक्षे सुरवरवन्दना

जय देव जय देवा जय मंगलमूर्ति

दर्शनमत्रे मनकामना पूर्ति

श्री गणेश चालीसा

दोहा

जय गणपति सद्गुण सदन कविवर बदन कृपाल।

विघ्न हरण मंगल करण जय जय गिरिजालाल॥

जय जय जय गणपति राजू।

मंगल भरण करण शुभ काजू॥

जय गजबदन सदन सुखदाता।

विश्व विनायक बुद्धि विधाता॥

वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन।

तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥

राजित मणि मुक्तन उर माला।

स्वर्ण मुकुट सिर नयन विशाला॥

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं।

मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥

सुन्दर पीताम्बर तन साजित।

चरण पादुका मुनि मन राजित॥

धनि शिवसुवन षडानन भ्राता।

गौरी ललन विश्व-विधाता॥

ऋद्धि—सिद्धि तव चँवर डुलावे।

मूषक वाहन सोहत द्वारे॥

कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी।

अति शुचि पावन मंगल कारी॥

एक समय गिरिराज कुमारी।

पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा।

तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रूपा।

अतिथि जानि कै गौरी सुखारी।

बहु विधि सेवा करी तुम्हारी॥

अति प्रसन्न ह्वै तुम वर दीन्हा।

मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥

मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला।

बिना गर्भ धारण यहि काला॥

गणनायक गुण ज्ञान निधाना।

पूजित प्रथम रूप भगवाना॥

अस कहि अन्तर्धान रूप ह्वै।

पलना पर बालक स्वरूप ह्वै॥

बनि शिशु रुदन जबहि तुम ठाना।

लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥

सकल मगन सुख मंगल गावहिं।

नभ ते सुरन सुमन वर्षावहिं॥

शम्भु उमा बहुदान लुटावहिं।

सुर मुनि जन सुत देखन आवहिं॥

लखि अति आनन्द मंगल साजा।

देखन भी आए शनि राजा॥

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं।

बालक देखन चाहत नाहीं॥

गिरजा कछु मन भेद बढ़ायो।

उत्सव मोर न शनि तुहि भायो॥

कहन लगे शनि मन सकुचाई।

का करिहौ शिशु मोहि दिखाई॥

नहिं विश्वास उमा कर भयऊ।

शनि सों बालक देखन कहऊ॥

पड़तहिं शनि दृग कोण प्रकाशा।

बालक शिर उड़ि गयो आकाशा॥

गिरजा गिरीं विकल ह्वै धरणी।

सो दुख दशा गयो नहिं वरणी॥

हाहाकार मच्यो कैलाशा।

शनि कीन्ह्यों लखि सुत को नाशा॥

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाए।

काटि चक्र सो गज सिर लाए॥

बालक के धड़ ऊपर धारयो।

प्राण मन्त्र पढ़ शंकर डारयो॥

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे।

प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे॥

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा।

पृथ्वी की प्रदक्षिणा लीन्हा॥

चले षडानन भरमि भुलाई।

रची बैठ तुम बुद्धि उपाई॥

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें।

तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥

धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे।

नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई।

शेष सहस मुख सकै न गाई॥

मैं मति हीन मलीन दुखारी।

करहुं कौन बिधि विनय तुम्हारी॥

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा।

लख प्रयाग ककरा दुर्वासा॥

अब प्रभु दया दीन पर कीजै।

अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥

दोहा

श्री गणेश यह चालीसा पाठ करें धर ध्यान।

नित नव मंगल गृह बसै लहे जगत सन्मान॥

सम्वत् अपन सहस्र दश ऋषि पंचमी दिनेश।

पूरण चालीसा भयो मंगल मूर्ति गणेश॥

 

 

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