Batuk Bhairav: digi desk/BHN/ हिंदुओं में देवी-देवताओं के कई स्वरूप की पूजा का विधान हैं। इनमें सभी मुश्किलों से जातकों को निकालने वाले भगवान भैरव है। भैरव की उत्पति भगवान शिवजी से हुई है। वहीं भैरव के दो स्वरूप हैं, जिनकी पूजा की जाती है। जिनमें एक बटुक भैरव और दूसरे काल भैरव हैं। भगवान भैरव की पूजा करने से बुद्धि और मान-सम्मान में वृद्धि होती है। वहीं साधकों को संकटों से मुक्ति मिलती है।
बटुक भैरव का स्वरूप
भगवान बटुक भैरव स्फटिक के समान शुभ्र वर्ण के हैं। उन्होंने कानों कुंडल धारण किया है और मणियों से सुशोभित है। बटुक अपनी भुजाओं में अस्त्र-शस्त्र धारण करते हैं।
बटुक भैरव की उत्पत्ति
शास्त्रों के अनुसार प्राचीन काल में एक राक्षस था। जिसने तपस्या कर यह वर प्राप्त कर लिया था कि उसे सिर्फ पांच साल का लड़का ही मार सकता है। इसके बाद तीनों लोकों में उसने आतंक फैलाया। ऐसे में सभी देवता परेशान होकर समाधान खोजने लगे। तभी एक तेज प्रकाश निकला और पांच वर्षीय बटुक की उत्पत्ति हुई। जिसने राक्षस का वध किया।
भगवान बटुक भैरव की पूजा करने से जातकों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। रविवार के दिन भैरव की साधना करने साधकों को सभी विपदा से मुक्ति मिलती है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार राहु-केतु के प्रकोप से बचने के लिए बटुक भैरव की पूजा-अर्चना करना लाभदायक होता है। मंत्र (ऊं ह्वीं वां बटुकाये क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये कुरु कुरु बटुकायें ह्रीं बटुकाये स्वाहा) का प्रतिदिन 108 बार जप करने से बटुक भैरव प्रसन्न होते हैं।