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Sawan: सावन में Shiva Tandav Stotram शिव तांडव स्‍तोत्र से करें महादेव की आराधना, पढ़ें संपूर्ण मंत्र, हर छंद का हिंदी अर्थ

Sawan 2021 : digi desk/BHN/ सावन मास अर्थात भगवान शिव की भक्ति का महापर्व। देवाधिदेव महादेव के ऐसे तो असंख्‍य भक्‍त हुए हैं किंतु राक्षसराज स्‍वयं रावण की कोटि अलग है। रावण परम शिव भक्‍त था और उसका भक्ति का ढंग भी अनन्‍य था। रावण रचित शिव तांडव स्‍तोत्र सदा से भोलेनाथ की आराधना का महान मंत्र रहा है। सावन मास में एक बार फिर से भक्‍तगण इस महान छंद का उच्‍चारण करने को तैयार हैं। यहां हम आपको शिव तांडव स्‍तोत्र सहित इसकी कथा भी बताने जा रहे हैं। इन्‍हें देखिये, सुनिये और शिव भक्ति में रम जाइये। हर हर महादेव।

शिव तांडव की कथा

यह मान्यता है कि शिवभक्त रावण ने एक बार भक्ति के उन्‍माद में आकर पूरा कैलाश पर्वत ही उठा लिया था। इसके बाद जब वह पूरे पर्वत को ही लंका ले जाने लगा तो स्‍वयं उसे अपनी शक्ति पर पूर्ण अहंकार भाव हो गया था। भगवान महादेव को उसका यह अहंकार पसंद नही आया तो उन्‍होंने अपने पैर के अंगूठे से तनिक सा जो दबाया तो कैलाश फिर जहां था वहीं वापस ही अवस्थित हो गया। रावण का हाथ दब गया और वह पुकार कर उठा – “शंकर शंकर” – अर्थात क्षमा करिए, क्षमा करिए, और स्तुति करने लग गया। यह स्‍तुति ही कालांतर में शिव तांडव स्तोत्र के नाम से ख्‍यात हुई। शिव ताण्डव स्तोत्र से शिव इतना प्रसन्‍न हुए कि भोलेनाथ ने ना केवल रावण को सकल समृद्धि और सिद्धि से युक्त सोने की लंका वरदान स्‍वरूप दे डाली, अपितु सम्पूर्ण ज्ञान, विज्ञान तथा अमर होने का वरदान भी दिया। यह भी कहा जाता है कि शिव ताण्डव स्तोत्र सुनने मात्र से ही व्यक्ति सम्पत्ति, समृद्धि अथवा सन्तादि प्राप्त करता है। इस स्रोत की भाषा बहुत छंदमय, अनुपम और जटिल है, परन्‍तु महाविद्वान रावण ने इसे कुछ क्षणों में ही रच डाला था। शिव स्तुति और प्रसन्नता में यह स्तोत्र राम बाण है।

रावण कृत शिव तांडव स्‍तोत्रं

जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले

गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।

डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं

चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥

जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।

विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।

धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके

किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥

धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-

स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।

कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि

कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥

जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-

कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।

मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे

मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥

सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-

प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।

भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः

श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥

ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-

निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्‌ ।

सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं

महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥

कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-

द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।

धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-

प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥

नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-

त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।

निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः

कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥

प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा-

विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌

स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं

गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥

अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-

रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌ ।

स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं

गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर-

द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-

धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-

ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-

र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।

तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः

समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥

कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्‌

विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः

शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌कदा सुखी भवाम्यहम्‌॥13॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-

निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।

तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं

परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी

महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।

विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः

शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥15॥

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं

पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं

विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥16॥

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं

यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।

तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां

लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥

॥ इति शिव तांडव स्तोत्रं संपूर्णम्‌॥ > >

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