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Sankashti Chaturthi: सावन का अंगारकी संकष्टी चतुर्थी व्रत नियम, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कब नहीं करनी है पूजा, जानें

Sankashti Chaturthi 2021: digi desk/BHN/ मंगलवार का दिन वैसे तो बहुत शुभ माना जाता है, ऐसे में संकष्टी चतुर्थी आज के दिन यानी मंगलवार के दिन पड़ना बड़ा अच्छा संयोग माना जा रहा है। ऐसा माना जाता है कि जब पार्वती जी के अनुरोध पर शिवजी ने गणपति को नया मुख लगवाया तो उनका नाम गजानन रखा गया उसके बाद से ही चतुर्थी व्रत की परंपरा शुरू हुई और इस बार सावन मास की संकष्टी 27 जुलाई दिन मंगलवार को यानी आज है। आज के दिन भक्त भगवान गणेश जी की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं। चलिए आज इस खास तिथि पर व्रत के नियम, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत महत्व और वह समय जब पूजा नहीं करना चाहिए उसके बारे में जानते हैं।

अंगारकी संकष्टी चतुर्थी व्रत नियम

अगर आप भी इस व्रत को रखकर शुभ फल की प्राप्ति करना चाहते हैं तो इससे पहले जरूरी है कि आप इससे जुड़े कुछ जरूरी नियम जान लें। क्योंकि भूलवश अगर आप इन नियमों का पालन नहीं करते हैं तो आपको शुभ फल की प्राप्ति नहीं होगी एवं आपका व्रत भी निष्फल साबित होगा।

सबसे पहले ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर स्नानादि कर लें।

पूर्णतः स्वच्छ होकर स्वच्छ कपड़े ही पहनें।

किसी भी रूप में चावल, गेहूं और दाल का सेवन न करें।

व्रत के दौरान ऊॅं गणेशाय नमः मंत्र का जप करें।

ब्रम्हचर्य का पालन करना बेहद जरूरी है।

मांस मदिरा का सेवन करना सख्त मना है।

अंगारकी संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त

चतुर्थी तिथि 27 जुलाई को शाम 03ः54 बजे से शुरू होकर 28 जुलाई दोपहर 02ः16 बजे तक रहेगी।

चंद्रमा का समय

चंद्रोदय – 27 जुलाई रात्रि 9ः50 बजे

चंद्रास्त – 28 जुलाई प्रातः 9ः40 बजे

गजानन संकष्टी गणेश चतुर्थी शुभ मुहूर्त

अभिजीत मुहूर्त – सुबह 11:59 बजे से दोपहर 12:55 बजे तक

विजय मुहूर्त – दोपहर 2:44 बजे से दोपहर 3:38 बजे तक

गोधुली मुहूर्त – शाम 7:05 से शाम 7:29 तक

अंगारकी संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि

  • आज के दिन जल्दी उठकर स्नान आदि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें
  • अगर आप लाल वस्त्र पहनकर पूजा करते हैं तो यह काफी शुभ होता है।
  • पूजा करते समय मुख उत्तर या पूर्व दिशा में रखना चाहिए।
  • साफ आसन या चौकी पर भगवान श्रीगणेश को विराजित करें।
  • विराजित गणेश भगवान की धूप-दीप से पूजा करें।
  • पूजा के दौरान ऊॅं गणेशाय नमः या ऊॅं गणपते नमः मंत्र का जाप करें।
  • पूजा संपन्न होने के बाद भगवान गणेश को भोग में मोदक या लड्डू चढ़ाना न भूलें
  • शाम के समय व्रत कथा पढ़कर और चांद को अर्घ्य देकर अपना व्रत खोल सकते हैं।
  • व्रत जब संपन्न हो जाए तो दान करना न भूलें।

संकष्टी चतुर्थी का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस खास दिन का विशेष महत्व माना जाता है। इस खास दिन भगवान श्रीगणेश की पूजा-अर्चना करने से भक्तों की सभी बाधाएं दूर होती हैं। शास्त्रों में भगवान श्रीगणेश को विघ्नहर्त भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन करना बेहद शुभ होता है। चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही यह व्रत पूर्ण माना जाता है।

संकष्टी चतुर्थी के अशुभ मुहूर्त

अगर आप चाहते हैं कि आपके द्वारा की गई पूजा शुभ हो एवं इससे आपको उचित फल की प्राप्ति हो तो नीचे बताए गए अशुभ समय के दौरान भूल से भी पूजा न करें। चलिए जानते हैं अशुभ मुहूर्त कब है?

  • राहुकाल- दोपहर 03 बजे से 04:30 बजे तक।
  • यमगंड- सुबह 09 बजे से 10:30 बजे तक।
  • गुलिक काल- दोपहर 12 बजे से 01:30 बजे तक।
  • दुर्मुहूर्त काल- सुबह 08:23 बजे से 09:17 बजे तक। इसके बाद रात 11:25 बजे से 28 जुलाई सुबह 12:07 बजे तक।

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