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MP Kuno Palpur National park: चिंटू और मिंटू की कहानी चीता की सुरक्षा में ढाल का काम करेगी

The story of chintu and mintu: digi desk/BHN/ भोपाल/श्योपुर के कूनो पालपुर नेशनल पार्क में अफ्रीकी चीता तो नवंबर में आएगा, पर उसके दुनिया का सबसे तेज दौड़ने वाला प्राणी और शिकार में चंट (माहिर) होने की कहानियां अभी से गांवों में पहुंच गईं। इन कहानियों ने ग्रामीणों की खुद और मवेशियों की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ा दी है। जब यही चिंता लेकर ग्रामीण वन अधिकारियों के पास पहुंचे, तो उनके डर को खत्म करने के लिए वन्यप्राणी मुख्यालय ने ‘चिंटू और मिंटू” की कॉर्टून कहानी गढ़ दी। यह कहानी चीता की सुरक्षा में ढाल साबित होने वाली है। इस कहानी में चिंटू चीता है और मिंटू गांव का एक बच्चा। जो अपनी दादी से संवाद के जरिये ग्रामीणों को बता रहा है कि चीता इंसान के लिए खतरनाक नहीं है।

कूनो पालपुर में चीता के आने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। पार्क में छह करोड़ की लागत से विशेष बाड़ा बनाया जा रहा है। जिसमें अफ्रीका से आने वाले 14 चीता (नर एवं मादा) को शुरूआती दिनों में रखा जाएगा। पार्क में तैयारियां शुरू होते ही ग्रामीणों का भी पारा चढ़ गया। उन्होंने इंटरनेट मीडिया से चीता की जानकारी निकाली और इस दहशत में आ गए कि दुनिया का सबसे तेज दौड़ने वाला और शिकार में माहिर चीता उनके और उनके मवेशियों के लिए घातक हो सकता है।

इसे लेकर विरोध शुरू होता, उससे पहले वन अधिकारी जमीनी स्थिति भांप गए और ग्रामीणों को बताया कि चीता एवं तेंदुआ में अंतर है। चीता तेज दौड़ता है और शिकार भी कुशलता से करता है, पर तेंदुए के समान दोगला (चुपके से नुकसान पहुंचाने वाला) नहीं है। अधिकारियों ने ग्रामीणों को बताया है कि अफ्रीका में सात हजार से ज्यादा चीता हैं, पर उनके द्वारा इंसान को मारने के प्रमाण नहीं है।

दीवारों पर चस्पा होंगे पोस्टर

विभाग हर महीने ‘चिंटू और मिंटू” की कहानी का नया भाग जारी करेगा। जिसमें ग्रामीणों के नए-नए सवालों के जवाब होंगे। पोस्टरों को पार्क के आसपास स्थित गांवों में मकान और सरकारी भवनों की दीवारों पर चस्पा किया जाएगा। ताकि लोग पढ़ें और चीता को लेकर आने वाली भ्रामक सूचनाओं पर भरोसा न करें। साथ ही मैदानी वन कर्मचारी अपने-अपने प्रभार के गांवों में जाकर चीता को लेकर फैल रहे भ्रम को दूर करेंगे।

73 साल बाद आ रहा चीता

देश में 73 साल बाद चीता लौट रहा है। वर्तमान छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में वर्ष 1947 आखिरी बार चीता देखा गया था। वर्ष 1952 में भारत सरकार ने इसे विलुप्त प्राणी घोषित किया है। चीता को देश में फिर से बसाने की योजना वर्ष 2010 में बनी थी। मध्य प्रदेश सरकार ने उनके लिए कूनो पालपुर को उपर्युक्त स्थान बताया था, पर गिर के बब्बर शेरों के लिए पार्क तैयार होने के कारण एक याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। वर्ष 2020 में कोर्ट ने रोक हटा दी थी। इसके बाद नवंबर 2021 में चीता लाने की तैयारी हुई।

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