RIP Dilip Kumar: digi desk/BHN/ हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार दिलीप कुमार इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं। 7 जुलाई 2021 को सुबह 7 बजकर 30 मिनट पर उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली। वो 98 साल के थे और खराब सेहत के कारण मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में भर्ती थे। दिलीप कुमार भले ही अपनी मर्जी से सिनेमा में नहीं आए थे, लेकिन जब आए तो दुरुस्त आए। उनकी पहली फिल्म भी कुछ खास नहीं कर सकी थी, पर उन्होंने जिस तरह से डायलॉग बोले थे। उससे यह तो साफ था कि वो हिंदी सिनेमा में बहुत आगे तक जाएंगे। बाद में दिलीप साहब ने कमाल किया और वो अपने साथ-साथ हिंदी सिनेमा को भी बहुत आगे ले गए। यहां हम उनके 10 सदाबहार डायलॉग के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें शायद कभी भी कोई भूलना नहीं चाहेगा।
सौदागर (1991)
साल 1991 में आई फिल्म सौदागर में दिलीप कुमार ने कहा था “हक हमेशा सर झुकाकर नहीं… सर उठाकर मांगा जाता है।”
कर्मा (1986)
शेर को अपने बच्चों की हिफाजत के लिए शिकारी कुत्तों की जरूरत नहीं है।
शक्ति (1982)
जो लोग सच्चाई की तरफदारी की कसम खाते हैं, जिंदगी उनके बड़े कठिन इम्तिहान लेती है।
मुगल-ए-आजम (1960)
तकदीरें बदल जाती हैं, जमाना बदल जाता है, मुल्कों की तारीख बदल जाती है, शहंशाह बदल जाते हैं, मगर इस बदलती हुई दुनिया में मोहब्बत जिस इंसान का दामन थाम लेती है वो इंसान नहीं बदलता।
मुगल-ए-आजम (1960)
मेरा दिल भी आपका कोई हिंदुस्तान नहीं, जिस पर आप हुकूमत करें।
पैगाम (1959)
जिस धन के लिए आप दुनिया से धोखा कर रहे हैं, अपने अजीजों से, अपने दोस्तों से धोखा कर रहे हैं, अपने साथियों से धोखा कर रहे हैं, उसी धन के हाथों आप खुद भी धोखा खाएंगे।
नया दौर (1957
जब पेट की रोटी और जेब का पैसा छिन जाता है ना, तो कोई समझ वमझ नहीं रह जाती आदमी के पास।
देवदास (1955)
कौन कम्बख्त है जो बर्दाश्त करने के लिए पीता है, मैं तो पीता हूं कि बस सांस ले सकूं।
संगदिल (1952)
मैं किसी से नहीं डरता, मैं जिंदगी से नहीं डरता, मौत से नहीं डरता, अंधेरों से नहीं डरता, डरता हूं तो सिर्फ खूबसूरती से।
संगदिल (1952)
दुनिया में असली शांति किसी से सच्चे प्यार में ही मिल सकती है, उसके बगैर दुनिया जिसे शांति कहती है, वो शांति एक थकान है, शिकस्त और मौत का दूसरा नाम है।