World Mental Health Day भोपाल। 20 साल की उम्र में एक युवक ‘बाई पोलर डिसआर्डर’ और ‘पैरोनाइड साइकोसिस’ नामक बीमारी से पीड़ित हो गया। अपने घर वालों पर शक करने लगा। उसके अंदर हीन भावना आने लगी कि कोई उसकी सुन नहीं रहा। पूरा दिन कमरे में बद रहता था। उसके मन में खुदकुशी के विचार आने लगे। 1994 में उसने हमीदिया अस्पताल के मनोचिकित्सक डा. आरएन साहू को दिखाया। तब से आज तक युवक का वह इलाज कर रहे हैं। काउंसिलिंग और इलाज के बाद मरीज को खुद पर इतना भरोसा हो गया है कि 2005 में वह तैयारी कर ‘कौन बनेगा करोड़पति’में पहुंचे थे। इसके बाद उन्होंने एक सहकारी बैंक शुरू किया। ऐसे ही कई लोग हैं जो मानसिक बीमारियों के चलते खुद को खत्म करने में तुले थे। घर वालों से विवाद हो रहा था। उन्हें लगा था कि जिंदगी में सब कुछ खत्म हो गया, लेकिन इलाज के बाद न सिर्फ वह स्वस्थ हुए, बल्कि बड़ा काम कर दिखाया।
मनोचिकित्सक डा. आरएन साहू ने कहा कि मानसिक बीमारियों को भी दूसरी बीमारियों की तरह मानकर इलाज कराना चाहिए। छिपाना नहीं चाहिए। यह कोई पाप नहीं हैं। मनोचिकित्सक डा. सत्यकांत त्रिवेदी ने कहा कि मनोरोगों से पीड़ित 80 फीसद लोग इलाज के लिए आते ही नहीं हैं। मानसिक स्वास्थ्य पर निवेश आम जन और सरकार दोनों को करना होगा। खुद की और देश की उन्नति के लिए यह जरूरी है। मनोचिकित्सक डॉ.प्रीतेश गौतम ने कहा कि मानसिक बीमरियों का इलाज नहीं होने पर लोग खुद को खत्म करने तक के लिए ठान लेते हैं। सही वक्त पर काउंसिलिंग व इलाज हो तो आत्महत्या को रोक जा सकता है।
केस-1 : मैनिट से इंजीनियरिंग करने के बाद एक युवक 2017 में भेल में नौकरी करने लगा। बाद में नौकरी छोड़कर सिविल सेवा की तैयारी करने लगा। दो बार मुख्य परीक्षा देने के बाद सफल नहीं हुआ तो वह अवसाद (डिप्रेशन) से पीड़ित हो गया। डा. प्रीतेश गौतम के यहां एक साल तक इलाज के बाद खुद पर भरोसा बढ़ा। युवक मप्र पीएससी से चयनित होकर वाणिज्य कर अधिकारी बन गया।
केस-2 : स्नातकोत्तर कर चुकी एक युवती अवसाद की शिकार हो गई। घर वालों से विवाद शुरू हो गया। उसने दो बार खुदकुशी की कोशिश की। इसके बाद मनोचिकित्सक डा. सत्यकांत त्रिवेदी से परामर्श लिया। युवती ने बताया कि चार साल से उनका इलाज चल रहा है। अब उन्हें बहुत अच्छा लग रहा है। वह होशंगाबाद के एक निजी अस्पताल में कोआर्डिनेटर का काम कर रही हैं।