Fake corona vaccine certificate: digi desk/BHN/इंदौर/ सरकार जहां एक तरफ कोरोना वायरस से बचाव के लिए लगाए जा रहे टीकाकरण के प्रमाण पत्र को अनिवार्य कर रही है, वहीं साइबर ठगी के सबसे बड़े केंद्र डार्क वेब पर इन दिनों साइबर अपराधी दो डालर में कोरोना टीकाकरण का प्रमाण पत्र उपलब्ध करवा रहे हैं। इससे वे लोग, जिन्होंने टीका नहीं लगवाया है, वे भी प्रमाण पत्र बनवा रहे हैं। अब तक प्रमाण पत्र के असली या फर्जी होने की जांच के लिए कोई व्यवस्था नहीं है।
हाल ही में मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर सहित देश के कई मंदिरों में दर्शन के लिए टीकाकरण का प्रमाण पत्र अनिवार्य किया गया है। इसके अलावा कई राज्य अपने एयरपोर्ट पर आरटीपीसीआर के बजाय इसे ही अनिवार्य करने वाले हैं, लेकिन अब इन प्रमाण पत्रों को लेकर भी फर्जीवाड़ा शुरू हो गया है।
इंदौर के साइबर विशेषज्ञ प्रतीक चौरड़िया बताते हैं कि ऐसा ही फर्जीवाड़ा आरटीपीसीआर की जांच रिपोर्ट को लेकर भी सामने आया था, लेकिन अब जो हो रहा है, वह काफी खतरनाक है। डार्क वेब पर साइबर ठग आसानी से आदमी से डिटेल लेकर उसे प्रमाण पत्र उपलब्ध करवा रहे हैं। इसके लिए दो डालर तक का चार्ज लिया जाता है। भुगतान क्रिप्टोकरंसी या बिटकाइन में ही करना होता है। कई लोग जिन्हें तत्काल विदेश जाना है या जो टीका नहीं लगवा पाए हैं, वे लोग इस तरह के फर्जी प्रमाण पत्र बनवा रहे हैं। अभी सरकार इसे अनिवार्य तो कर रही है, लेकिन इसकी जांच के लिए कोई इंतजाम नहीं है कि प्रमाण पत्र असली है या नकली।
डिटेल लेकर हो सकती है बड़ी ठगी
साइबर विशेषज्ञ चौरड़िया के अनुसार, कोरोना से जुड़ी कई प्रकार की ठगी भी हो रही है। पहले जब टीका नहीं आया था, तब कोरोना की दवा बेचने का दावा डार्क वेब पर किया जा रहा था। दावा था कि चीन ने कोरोना की दवा बना ली है। साइबर ठग आर्डर करने वाले से निजी जानकारी जैसे नाम, उम्र, लिंग, ईमेल पता, कोविड टेस्ट पाजिटिव, निगेटिव जैसी जानकारियां भी ले रहे हैं। बाद में उससे बड़ी ठगी कर लेते हैं। वेब पर हैक करके रखा गया बड़ा डाटा रहता है, जिसे बेचा जाता है। इसमें सबसे बडी ठगी क्रेडिट कार्ड को लेकर होती है।
यह है डार्कवेब
सामान्य भाषा में कहें तो इंटरनेट की तीन परतें हैं- सर्फेस वेब, डीप वेब और डार्क वेब। डार्क वेब को साधारण ब्राउजर से एक्सेस नहीं किया जा सकता। इसके लिए किसी खास ब्राउजर की मदद लेनी पड़ती है। इसमें यूजर का आइपी (इंटरनेट प्रोटोकाल एड्रेस) लगातार बदलता रहता है। इससे इन्हें ट्रेस करना तकरीबन नामुमकिन होता है। डार्क वेब का इस्तेमाल आमतौर पर हैकर करते हैं। यहां चुराए गए डाटा की खरीद-फरोख्त होती है। इसके जरिए कई अपराधों को अंजाम दिया जाता है।
इनका कहना है
डार्क वेब या डार्क नेट पर अवैधानिक गतिविधियां होती हैं। यहां लोग पहचान छिपा कर काम करते हैं। सरकार के पास टीका लगवाने वालों का पूरा रिकार्ड रहता है। इस प्रकार से गलत प्रमाण पत्र लेना अपराध की श्रेणी में आता है। अपना डाटा देने वालों के साथ ठगी भी हो सकती है।
– जितेन्द्र सिंह, एसपी, राज्य साइबर सेल, मध्य प्रदेश