भोपाल। सिर छोड़िए, किसी भी वन्यप्राणी के शरीर में घातु से वार करने पर घाव हो जाए और वह धातु अंदर ही फंस जाए तो बिना इलाज उसका बच पाना मुश्किल होता है। ऐसी ही स्थिति में कई वन्यप्राणी जान गंवा चुके हैं। इसके विपरीत इंदौर के चिड़ियाघर में एक तेंदुआ ऐसा भी है, जिसके सिर में 46 छर्रे हैं। फिर भी वह तीन माह से जिंदा है। रोज छह किलो मांस खाता है।
दिक्कत केवल आंखों की रोशनी चले जाने से हो रही है, लेकिन इंसानों की आहट को समझ लेता है और गुर्राने लगता है। यह तेंदुआ शिकारियों की गोलियों का शिकार हुआ है। छर्रे कैसे निकाले जाएं, इस पर अब स्कूल ऑफ वाइल्ड लाइफ एंड हेल्थ जबलपुर व महू कॉलेज के वन्यप्राणी विशेषज्ञों की टीम अध्ययन कर रही है।
भोपाल के राज्य पशु चिकित्सालय में तेंदुआ के सीटी स्कैन में छर्रे होने की जानकारी सामने आई थी। दरअसल, इंदौर सामान्य वन मंडल नयापुरा में इसी वर्ष 10 जुलाई चार साल का तेंदुआ जख्मी हालत में मिला था। इंदौर चिड़ियाघर में उसका इलाज किया जा रहा था। धीरे-धीरे उसकी एक आंख की रोशनी चली गई। दूसरी से भी दिखना कम हो गया। सीटी स्कैन कराने के लिए डॉक्टर उसे भोपाल लेकर आए थे। यहां वन विहार वन्यप्राणी विशेषज्ञ डॉ. अतुल गुप्ता की देखरेख में उसकी जांच की गई।
जिंदा होना बड़ी बात
तेंदुए के सिर में छर्रे होने की बात चिंता करने वाली है, लेकिन हो सकता है कि छर्रे हड्डी में न होकर ऊपरी हिस्से में हों। यदि सिर की हड्डियों में धंसे होते तो उसकी हालत जल्दी बिगड़ जाती। वैसे भी आंखों की रोशनी जाना गंभीर खतरा है। अब सीटी स्कैन रिपोर्ट आ गई है तो छर्रे भी निकाल लिए जाएंगे। इसके दो तरीके हैं, एक तो सर्जरी की जा सकती है या फिर जहां-जहां छर्रे होंगे, वहां छेद करके निकाले जा सकते हैं।
आरके दीक्षित, वरिष्ठ वन्यप्राणी विशेषज्ञ, भोपाल