Ganesha with left trunk:digi desk/BHN/ भगवान गणेश प्रथम पूज्य देव हैं। कलियुग में गणेश और हनुमान ही ऐसे देवता हैं जिनका पूजन तुरंत फल देता है। भगवान गणेश बुद्धि के आराध्य देव हैं और विघ्नों का नाश करने के साथ ही वे विवेक भी प्रदान करते हैं। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्यान्ह के समय अभिजीत मुहूर्त और वृश्चिक लग्न में भगवान गणेश का जन्म हुआ था और उनके जन्म का उत्सव ही हम गणेश चतुर्थी के रूप में मनाते हैं। गणेश और हनुमान ही कलि युग के ऐसे देवता हैं जो अपने भक्तों से कभी नहीं रूठते हैं।
यही वजह है कि इनकी आराधना करने वालों की सभी भूलों को ये क्षमा कर देते हैं। भगवान गणेश चूंकि विघ्नों का नाश करते हैं इसलिए सर्वप्रथम उन्हें ही पूजा जाता है। गणपति आदिदेव हैं जिन्होंने हर युग में अवतार लिया।
वे गणों के पति हैं इसलिए उन्हें गणपति कहा जाता है। पति यानी पालन करने वाले या स्वामी और गण यानी अष्टवसु का समूह। वसु यानी दिशा। इस तरह गणपति दिशाओं के स्वामी हैं। इनकी इजाजत के बगैर अन्य देवता किसी भी दिशा से नहीं आ सकते।
गजानन यानी हाथी के मुख वाला। लेकिन वस्तुत: गज यानी दसों दिशाएं। इन सभी दिशाओं में जिसका नियंत्रण है वह गजानन। अब आध्यात्मिक नजरिए से उनके इस स्वरूप को विचारें तो बेहद गूढ़ अर्थ प्राप्त होता है।
गजानन का शाब्दिक विवेचन करें तो ग,ज, आनन। इनमें ‘ग’ यानी गमन और ‘ज’ यानी जनम। सो जनम से लेकर गमन (मृत्यु) के बीच का जो समय है वह कालस्वरूपी गजानन है। उनके इस स्वरूप से यह मालूम होता है कि हमारा उनके साथ रिश्ता कितना मजबूत है।
सूंड दाईं या बाईं?
श्रीगणेश सर्वत्र गजमुख स्वरूप में पूजे जाते हैं। उनके समीप रिद्धि और सिद्धि रहती हैं। श्री गणेश के दाहिनी तरफ सिद्धि है तो बाईं तरफ रिद्धि। और इस तरह सिद्धि की तरफ सूंड वाले गणेश सिद्धि विनायक कहलाते हैं। आमतौर पर बाईं सूंड के श्रीगणेश पूजे जाते हैं क्योंकि दाहिनी सूंड के श्रीगणेश की पूजा कडे नियमों वाली है और उसमें जरा-सी चूक भी देवता को प्रकोप दिलाती है।
लेकिन सत्य तो यह है कि व्यवहार में जैसे हम दायां-बायां करते हैं उसी तरह उपासना में भी है। उपासना में बाएं बाजू का आशय व्यावहारिक बातों से है तो दाहिने का मोक्ष प्राप्ति से। इसलिए दुनियादारी में जीने वाले भक्तों को बाईं सूंड के गणेश का पूजन करना चाहिए और जिन्हें मोक्ष प्राप्त करना है उन्हें दाहिनी सूंड वाले गणेश का पूजन करना चाहिए।
दूर्वा और लाल पुष्प प्रिय
श्री गणेश को रक्तवस्त्र, रक्त पुष्प, रक्त चंदन या लाल रंग बेहद प्रिय है। चूंकि श्रीगणेश सृष्टि के कर्ता हैं यानी रजोगुणी हैं। सृष्टि निर्माण के लिए रजोगुण जरूरी है जिसका रंग लाल माना गया है। इसी तरह उन्हें दूर्वा भी अतिप्रिय है। अनलासुर दैत्य का वध करने के जब श्रीगणेश ने उसे निगल लिया था तो उनके पेट में बहुत जलन हुई। कई उपायों के बाद जब जलन शांत नहीं हुई तो कश्यप ऋषि ने उन्हें दूर्वा की 21 गांठ बनाकर चढ़ाई और उन्हें राहत मिली। तभी से श्रीगणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हुई।