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बैकुंठ चतुर्दशी में संतान की प्राप्ति के लिए उत्तराखंड में यहां होता है विशेष अनुष्ठान, जानिए क्या है मान्यता

देहरादून.
आज बैकुंठ चतुर्दशी है। हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार आज के दिन विष्णु और शिव भगवान की आराधना करने वालों की मनोकामना पूरी होती है। आज के दिन दिये जलाने का विशेष महत्व है। उत्तराखंड में दो ऐसे सिद्धपीठ मंदिर है जहां आज संतान की प्राप्ति के लिए दंपत्ति विशेष पूजा अर्चना करते हैं।

रुद्रप्रयाग में क्रौंच पर्वत पर विराजमान भगवान कार्तिक स्वामी के तीर्थ में दो दिवसीय बैकुंठ चतुर्दशी मेला आयोजित होता है। रात को कार्तिक स्वामी मंदिर परिसर में रातभर अखंड जागरण और कीर्तन भजनों का आयोजन होता है। निसंतान दंपतियों की ओर से रातभर हाथों में प्रज्वलित दीप लेकर संतान प्राप्ति की कामना की जाएगी।

निसंतान दंपति हाथों में रातभर जलता दीया लेकर संतान प्राप्ति की कामना करते हैं। संतान प्राप्ति की रात 9 बजे, 12 बजे, 3 बजे और 15 नवंबर को ब्रह्म बेला पर सुबह 6 बजे चारों पहर की चार आरतियां उतारी जाएंगी। अंतिम आरती के साथ अखंड जागरण, कीर्तन भजनों का समापन होगा।

बैकुंठ चतुर्दशी के पावन अवसर पर निसंतान दंपति हाथों में रातभर जलते दीपक लेकर संतान प्राप्ति की कामना करेंगे। 15 नवंबर को दिन भर श्रद्धालु पूजा-अर्चना और जलाभिषेक करेंगे। पौराणिक मान्यता है कि कार्तिक मास की बैकुंठ चतुर्दशी को शिव-पार्वती पुत्र कार्तिकेय को मिलने के लिए कैलाश से क्रौंच पर्वत आए थे। लेकिन कार्तिकेय क्रौंच पर्वत से चार कोस दूर हिमालय की ओर चले गए। शिव पार्वती समेत 33 कोटि देवी-देवताओं ने बैकुंठ चतुर्दशी की रातभर कुमार कार्तिकेय की स्तुति की। 33 कोटि देवी-देवता क्रौंच पर्वत पर ही पाषाण रूप में तपस्यारत हुए।

पौड़ी जिले के श्रीनगर में बैकुंठ चतुर्दशी मेले में कमलेश्वर महादेव मंदिर में हर साल संतान प्राप्ति के लिए विशेष अनुष्ठान किया जाता है। मान्यता है कि कमलेश्वर महादेव मंदिर में दंपति अपनी मनोकामना पूर्ण करने के उद्देश्य से पूरी रात भगवान शिव की आराधना करते हैं। यहां पर पूरे विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना होती है।

 

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