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Maha Shivratri: त्रिपुरासुर का संहार कर त्रिपुरेश्वर बने भगवान महाकाल

Maha Shivratri 2021:digi desk/BHN/ देवों के देव महादेव का त्रिपुरी से गहरा संबंध है। यही वह क्षेत्र है जहां महाकाल ने सतयुग में भक्तों की रक्षा के लिए त्रिपुरासुर का वध किया। दरअसल त्रिपुरासुर ने स्वर्ण, रजत और लौह नगरी बसाई थी जो तीनों लोक में भ्रमण करती थी। त्रिपुरी क्षेत्र में ज्यादा आतंक होने से देव और ऋषियों ने भगवान भोलेनाथ से प्रार्थना की तब अवंतिपुर (उज्जैन) के राजा महाकाल ने त्रिपुरासुर का वध किया। इस युद्ध के बाद त्रिपुरी क्षेत्र में त्रिपुरेश्वर महादेव की स्थापना की गई। इसका उल्लेख राजशेखर की बाल रामायण के साथ ही स्कंद पुराण के अर्वत्य खंड, पद्म पुराण, लिंग पुराण में मिलता है।

ब्रम्हा जी ने दिया था वरदान 

त्रिपुरासुर ने ब्रम्हा जी की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। ब्रम्हा जी से वरदान मांगा कि हमारी तीनों नगरी (स्वर्ण, रजत, लौह) आकाश में उड़ती रहे और एक हजार साल बाद जब तीनों कुछ पल के लिए एक सीध में आए तभी हमारा विनाश हो। ब्रम्हा जी के तथास्तु कहते ही उसने तीनों लोकों में तांडव शुरू कर दिया। तीनों नगरी ज्यादा समय त्रिपुरी क्षेत्र में ही रहतीं थीं।

पाशुपत अस्त्र से तीनों नगरी को किया था नष्ट 

त्रिपुरी क्षेत्र जबलपुर के ग्वारीघाट से तिलवाराघाट तक शामिल रहा। कालांतर में यहां शासन करने वाले विस्तार करते गए और यह बड़ा क्षेत्र बना जो महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात की सीमाओं तक शामिल रहा। कालगणना के अनुसार एक हजार साल बाद त्रिपुरासुर की तीनों पुरी को त्रिपुरी में कुछ समय के लिए एक सीध में मिलना था। तब महादेव के लिए एक रथ तैयार हुआ जिसमें सूर्य, चंद्रमा रथ के पहिये बने। अश्व के रूप में इंद्र, यम, कुबेर, वरूण और लोकपाल बने धनुष। पिनाक के साथ हिमालय और सुमेर पर्वत, डोर के रूप में वासुकी और शेषनाग, बाण में भगवान विष्णु और नोक में अग्नि आए। तब महादेव ने श्रीगणेश का आह्वान कर पाशुपत अस्त्र से तीनों पुरियों को एक सीध में स्थापित कर एक ही बाण में विध्वंस कर दिया।

विजय के बाद अवंतिपुर बना उज्जयिनी : त्रिपुरासुर पर विजय की स्मृति को स्थायी बनाने के लिए अवंतिपुर का नाम उज्जैयनी रखा गया था जिसे अब लोग महाकाल की नगरी उज्जैन के नाम से जानते हैं।

धार्मिक ग्रंथों ने इतिहास को सार्थकता प्रदान की है। भगवान महाकाल द्वारा त्रिपुरासुर के संहार का उल्लेख अनेक ग्रंथों में मिलता है जो जबलपुर (त्रिपुरी) को जीवंत रखे है। – डॉ. आनंद सिंह राणा, इतिहासकार

 

 

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