International Women’s Day Special:digi desk/BHN/मंदसौर/ सोचिये कैसा लगे जब आप एक ही शहर में हों और अपने बच्चों से मिलना तो दूर देख नहीं पाओ। फिर उस मां पर क्या गुजरती होगी जब वह चाह कर भी बेटी से रोज नहीं मिल सकती है। कोरोनाकाल में स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोगों को कुछ ऐसी ही परिस्थितियों से गुजरना पड़ा।
आयुष चिकित्सक डा. श्वेता रामावत छह माह तक घर नहीं गईं। उन्होंने बेटी को चार माह बाद देखा, वह भी दूर से। डा. मीनाक्षी उपाध्याय भी जी-जान से जुटी रहीं। मरीजों को कोरोना केयर सेंटर पहुंचाने के साथ ही उनके संपर्क में आए लोगों की सैंपलिंग और आइसोलेशन सेंटर भेजने के लिए बनी टीमों का नेतृत्व भी दोनों महिला चिकित्सकों ने किया था।
छह माह घर से दूर रहीं डा. श्वेता रामावत
आयुष चिकित्सक डा. श्वेता रामावत को कोरोनाकाल के समय बनी टीम में मरीजों को कोविड केयर सेंटर पहुंचाने के साथ ही उनकी संपर्क सूची में शामिल स्वजन और अन्य लोगों को क्वारंटाइन सेंटर तक पहुंचाने का काम मिला था। अप्रैल 20 से ही वे घर से बाहर निकली थीी जो वापस नवंबर में जा पाईं। शहर के गुदरी क्षेत्र में मिली जिले में सबसे पहली महिला मरीज को भेजने में जो मशक्कत लगी थी और उसकी संपर्क सूची में शामिल दूधवाले, इंजेक्शन लगाने वाले सहित अन्य लोगों को समझाइश से सैंपल देने के लिए भी राजी किया और उन्हें कोविड केयर सेंटर व क्वारंटाइन सेंटर पहुंचाया।
डा. श्वेता ने बताया कि गुदरी में चूंकि बीमारी का शुरुआती समय था तो लोगों को समझाने में भी परेशानी होती थी। वहां शहर काजी के परिवार में ही 6 पाजिटिव मिले थे। उनके यहां से 27 लोगों को क्वारंटाइन सेंटर पहुंचाया था। एक घर में पैरालिसिस वाली महिला, गर्भवती महिला को एंबुलेस तक लाना था तो स्वजन भी हाथ नहीं लगा रहे थे, ऐसे में हमारे स्वास्थ्यकर्मियों ने उन्हें उठाकर एंबुलेंस तक पहुंचाया। इस दौरान छह माह तक घर नहीं गई और बेटी को भी चार माह बाद घर के बाहर जाकर देखा था। जिला जेल में जाकर भी रोज कैदियों की जांच की।