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अमेरिका ताइवान को बचाने के लिए युद्ध की तैयारी में जुटा

वॉशिंगटन
रूस और यूक्रेन का युद्ध अभी भी चल रहा है। इस युद्ध के बाद ताइवान से जुड़े संघर्ष की संभावना जताई जा रही है, जिसे लेकर अमेरिका तैयारी करता दिख रहा है। अमेरिका का लक्ष्य चीन के खिलाफ संभावित ताइवान स्ट्रेट संघर्ष के लिए मिसाइल उत्पादन को बड़े पैमाने पर बढ़ाना है। एक हथियार निर्माण जो संस्थागत बाधाओं, औद्योगित चुनौतियों और महत्वपूर्ण सामग्रियों की संभावित कमी के कारण जल्दी रुक सकता है। द वार जोन में इस महीने आई रिपोर्ट में कहा गया था कि अमेरिकी वायु सेना अपने एंटरप्राइज टेस्ट व्हीकल (ETV) प्रोजेक्ट के साथ आगे बढ़ रही है, जिसका उद्देश्य चीन के खिलाफ संभावित उच्च-स्तरीय संघर्षों के लिए कम लागत और हाई प्रोडक्शन वाली क्रूज मिसाइलें बनाना है।

रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि चार कंपनिया- एंडुरिल इंडस्ट्रीज, इंटीग्रेटेड सॉल्यूशंस फॉर सिस्टम्स, इंक, लीडोस की सहायक कंपनी डायनेटिक्स और जोन 5 टेक्नोलॉजीज को सात महीने में नए मिसाइल कॉन्सेप्टस के डिजाइन, निर्माण और फ्लाइट टेस्ट के लिए चुना गया है। वार जोन ने बताया कि ईटीवी प्रोजेक्ट का लक्ष्य वाणिज्यिक और दोहरे इस्तेमाल वाले टेक्नोलॉजी सॉल्यूशन का प्रोटोटाइप बनाना है। मिसाइलें कई प्रक्षेपण विधियों के माध्यम से बड़े पैमाने पर तैनाती में सक्षम होंगी, जिससे विरोधियों के लिए रणनीतिक चुनौती पैदा होगी।

कीमत को कम करना लक्ष्य

अगर ये परियोजना सफल होती है तो लागत कम करते हुए अमेरिकी एयरफोर्स की रणनीतिक क्षमताओं को महत्वपूरण रूप से बढ़ा सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक कहा गया है कि डिजाइन का लक्ष्य 500 समुद्री मील (926 किमी) उच्च सबसोनिक गति और थोक ऑर्डर में 150,000 अमेरिकी डॉलर प्रति यूनिट की लागत का लक्ष्य हासिल करना है। वर्तमान AGM-158B हवा से सतह पर मार करने वाली स्टेंडऑफ मिसाइल से काफी कम है। एक्सटेंडेड रेंज की कीमत 12-15 लाख रुपए प्रति यूनिट के बीच है।

मिसाइल भंडार पर कितना खर्च करता है अमेरिका

ETV परियोजना मिसाइल भंडार को बढ़ाने के लिए अमेरिका की ओर से बड़े पैमाने पर खर्च किए जाने के बाद आई है। मार्च 2023 में टास्क एंड पर्पस ने बताया कि पेंटागन ने अपनी सामरिक मिसाइल और युद्ध सामग्री शस्त्रागार को बढ़ाने के लिए 2024 के लिए अपने 842 बिलियन डॉलर के बजट में 30.6 बिलियन डॉलर आवंटित किए थे। यूक्रेन युद्ध ने बड़े पैमाने पर औद्योगिक युद्धों में सटीक-निर्देशित हथियारों की अत्यधिक मांग को गिखाया है, जिससे कम लागत वाले समाधान और भी जरूरी हो गए हैं।

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