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लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने गठबंधन का दांव तो चल दिया, लेकिन जीत के लिए इन पांच चुनौतियों का करना होगा सामना !

नई दिल्ली

लोकसभा चुनाव के लिए वादों के दांव चले जा रहे हैं, एक-एक सीट पर रणनीति की बिसात बिछाई जा रही है. सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 'अबकी बार, 400 पार' का नारा दिया है. विपक्षी कांग्रेस नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को जीत की हैट्रिक लगाने से रोकने के लिए पूरा जोर लगा रही है. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 37.7 फीसदी वोट शेयर के साथ 303 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस ने 19.7 फीसदी वोट शेयर के साथ 52 और अन्य ने  30.9 फीसदी वोट शेयर के साथ 116 सीटें जीती थीं.

अन्य में यूपी की सपा-बसपा, ओडिशा की बीजेडी, तेलंगाना में बीआरएस और केरल में लेफ्ट की जीती सीटों का आंकड़ा भी शामिल है. कांग्रेस ने बीजेपी का विजयरथ रोकने के लिए यूपी और बिहार से लेकर महाराष्ट्र तक, क्षेत्रीय क्षत्रपों से हाथ मिला लिया है और पार्टी को उम्मीद है कि यह गठबंधन एनडीए का विजयरथ रोकने में सफल रहेगा. लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि कि क्या गठबंधनों के गणित से ही कांग्रेस बीजेपी का विजयरथ रोक लेगी?

स्ट्राइक रेट

लोकसभा की देश में कुल 543 सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं. इनमें राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, गुजरात जैसे राज्यों को मिलाकर लगभग दो सौ सीटें ऐसी हैं जहां बीजेपी और कांग्रेस की सीधी फाइट है. 2014 और 2019 के चुनाव नतीजे देखें तो बीजेपी पिछले दोनों चुनावों में इनमें से करीब 90 फीसदी सीटें जीतने में सफल रही है. कांग्रेस के सामने इन सीटों पर स्ट्राइक रेट सुधारने, वोट शेयर बढ़ाने की चुनौती है.

पिछले चुनाव में बीजेपी की जीती 40 सीटों पर हार-जीत का अंतर 50 हजार वोट से कम रहा था. इन 40 में से 11 सीटें बीजेपी और कांग्रेस की सीधी फाइट वाली थीं. कांग्रेस अगर 'तीसरी बार मोदी सरकार' के सपने को डेंट करना चाहती है तो उसे सीधी फाइट वाली इन सीटों पर स्ट्राइक रेट में सुधार करना होगा, विनिंग परसेंटेज बढ़ाना होगा. 2019 में 207 सीटें ऐसी थीं जहां कांग्रेस को 30 फीसदी या उससे अधिक वोट मिले थे. पार्टी को इन सीटों पर स्ट्राइक रेट सुधारना होगा.

वोट शेयर

बीजेपी को हिंदी पट्टी के यूपी, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में 50 फीसदी या उससे अधिक वोट मिले थे. इन राज्यों में कांग्रेस के सामने अपना वोट शेयर बढ़ाने की चुनौती है. यूपी में कांग्रेस ने इसी रणनीति के तहत सपा से हाथ मिलाया है जिससे विपक्ष का वोट न बंटे. कांग्रेस की उम्मीदों को पर तभी लग सकते हैं जब पार्टी इन राज्यों में अपना, गठबंधन सहयोगियों का वोट शेयर बढ़ाने में सफल रहे और बीजेपी का वोट शेयर-सीटें घटें.

इन राज्यों में प्रदर्शन

कांग्रेस यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में एक-एक, पश्चिम बंगाल में दो सीटों पर सिमट गई थी. पार्टी राजस्थान, उत्तराखंड, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा जैसे राज्यों के साथ ही केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में भी खाता तक नहीं खोल पाई थी. पार्टी के लिए इन राज्यों में खाता तक नहीं खोल सकी थी. इन राज्यों में कांग्रेस को अपना प्रदर्शन सुधारना होगा.

छिटके बेस वोटर को फिर से जोड़ना

कांग्रेस को छिटके वोट बैंक को फिर से अपने पाले में लाना होगा. सवर्ण, दलित, आदिवासी, पिछड़ा और अल्पसंख्यक कभी कांग्रेस का बेस वोटर हुआ करते थे जो अब अलग-अलग पार्टियों के साथ जा चुके हैं. कांग्रेस पुराना वोट बैंक फिर साथ ला पाती है तो उत्तर से पूर्वोत्तर तक उसके अधिक सीटों पर जीत की उम्मीदें मजबूत हो सकती हैं.

पूर्वोत्तर भारत में लोकसभा की 25 सीटें हैं और इनमें से कांग्रेस के पास चार सीटें हैं. इलाके की 21 सीटों पर 2019 में बीजेपी या उसके गठबंधन सहयोगियों को जीत मिली थी. कांग्रेस को दक्षिण भारत से सबसे अधिक उम्मीद है लेकिन उसे बीजेपी को रोकने के लिए उत्तर के साथ ही पूर्वोत्तर में भी अपना प्रदर्शन सुधारना होगा.

जीती सीटें बचाए रखना

कांग्रेस ने 2019 में कुल 421 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और इनमें से 52 सीटों पर पार्टी को जीत मिली थी. कांग्रेस की हारी सीटों में से 11 ऐसी थीं जहां हार-जीत का अंतर 10 फीसदी से कम वोट का था और पार्टी ने 2024 में इनमें से कम से कम आधी सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. कांग्रेस अपनी जीती सीटें बचाए रखने के साथ उत्तर-पूर्वोत्तर से अपनी सीटें बढ़ाने की जुगत में है. कांग्रेस के लिए यह इतना आसान भी नहीं.

इन इलाकों में पार्टी के सामने विनिंग कैंडिडेट के साथ ही विनिंग फॉर्मूले की तलाश भी बड़ी चुनौती है. कांग्रेस को छिटके कोर वोट बैंक को वापस अपने पाले में लाने के लिए लोकल लेवल पर ऐसे नेतृत्व को बढ़ावा देना होगा जिसकी अलग-अलग जातियों पर मजबूत पकड़ हो. जातीय गणित और इमेज का ध्यान रखते हुए उम्मीदवारों का चयन करना होगा. राज्यों में संगठन को मजबूत करने पर भी पार्टी को जोर देना होगा.

 

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